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११. जखी
मूलनायक श्री महावीर स्वामी
श्री श्वेतांबर जैन तीर्थ दर्शन भाग-१
१२. भुज
मूलनायक जी श्री महावीर स्वामी
अबडासा के पंचतीर्थ का यह गाँव है। प्रतिष्ठा वि.सं. १९०५ में हुई थी। पुनः प्रतिष्ठा २०२८ में हुई। सेठ जीवराज तथा सेठ भीमसी रत्नसी ने यह मंदिर निर्माण करवाया है। माघ सुदी ५ को हर वर्ष उत्सव होता हैं। यह मंदिर रत्नटूक कहलाता है। कोट के भीतर दूसरे आठ मंदिर हैं। कोट में ९ मंदिरों
के शिखर पास-पास में होने से दृश्य अत्यंत रमणीय लगता है।
यहां से नलिया १५ कि.मी. तेरा २८ कि.मी. है। धर्मशाला और भोजनशाला की व्यवस्था है।
मूलनायक जी श्री चिन्तामणि पार्श्वनाथजी
श्री चिन्तामणि पार्श्वनाथ की प्रतिष्ठा १६६३ में साधु आनंद शेखर की निश्रा में कल्याण सागर सूरिश्वर के उपदेश से हुई। पार्श्वनाथ जी मूलनायक बहुत प्राचीन है। मंदिर में शिलालेख है। चिन्तामणि पार्श्वनाथ का मंदिर तीर्थ समान है । २६ मूर्तियाँ आरसकी हैं। भमती में ५ देरियाँ भगवान की है। एक देरी अम्बा जी की है। एक दादागुरु की है। भुज में कुल चार मंदिर शिखरबन्द हैं। भुज शहर की स्थापना वि.सं. १६०३ में हुई है।
माणेक लाल शाह कंगनलाला भुज की ओर से नीचे लिखी माहिती प्राप्त हुई है।
जखौ जैन मंदिर जी
ऋषभदेव भगवान का मंदिर श्री कल्याण सागर सूरिजी म. के उपदेश से कच्छ के राव भारमलजी सा. ने वि.सं. १६५६ में निर्माण करवाया। शान्तिनाथजी का मंदिर संघ ने बनवाया है। वि.सं. १८५० में प्रतिष्ठा हुई ।। पार्श्वनाथ जी वि.सं. १८७७ में स्थापना हुई। संभवनाथजी की प्रतिष्ठा वि.सं. २०१६ माघ वदी ६ गुरुवार को दादाबाड़ी में हुई। जैनों के ६०० घर हैं । जिसमें से ३५० खुल्ले है। आयंबिल भवन, जैन भोजनालय हैं।
सार्वजनिक पांजरापोल है।
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