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गुजरात विभाग : १ - भावनगर जिला
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श्रीतालध्वजगिरि(तलाजा) मूलनायक - श्री साचा सुमतिनाथजी
साचा सुमतिनाथ कहने लगे। अखंड ज्योति चालू है जिसमें से केशरिया श्यामवर्ण पद्मासनस्थ ७९ से.मी.
काजल के दर्शन होते हैं। प्राचीन काल की शाश्वत श्री शत्रुजय महातीर्थ की यह ढूंक मानने में दूसरे जैन मन्दिर - इसी पहाड़ पर श्री चिन्तामणि पार्श्वनाथ, महावीर आती थी। शत्रुजय पर्वत वहाँ तक फैला हुआ था। गिरनार से शत्रुजय तक भगवान, चौमुखी मन्दिर और एक गुरू मन्दिर हैं। प्राचीन काल में पहाड़ की लम्बाई थी वैसा शास्त्रों में लिखा है। आज भी यह गुरू मन्दिर में - गौतमस्वामी, सुधर्मास्वामी, जम्बुस्वामी, कलिकाल तालध्वजगिरि शत्रुजय पंचतीर्थ का तीर्थस्थल माना जाता हैं। यहाँ की सर्वज्ञ श्री हेमचन्द्र सूरीश्वरजी म., वृद्धिचन्द्रजी महाराज आदि तथा कुमार प्राचीनता में पहाड़ पर आने वाली छोटी बड़ी अनेक प्रकार की गुफायें हैं। पाल राजा की मूर्ति स्थापित हैं। गाँव में भी शान्तिनाथ भगवान और श्री कहा जाता हैं कि श्री आदिनाथ भगवान के ज्येष्ठ पुत्र श्री भरत चक्रवर्ती यहाँ मल्लिनाथ भगवान के दो विशाल मंदिर हैं। यात्रा करने के लिए आये थे। उन्होंने यहाँ पर एक सुन्दर मंदिर बनवाया था। इस पहाड़ पर आए हुए भव्य मंदिर तथा नैसर्गिक गुफाओं का दृश्य ई. सं. ६४० में चीनी यात्री हेनसांग ने भी अपने लेख में इस तीर्थस्थल का अत्यन्त रमणीय एवं मनमोहक दिखाई देता हैं। एक शत्रुजय गिरिराज पर के वर्णन लिखा हैं।
मंदिरों के समूह का दृश्य और दूसरी तरफ शत्रुजी-सरिता नदी के संगम का । वर्तमान मन्दिर १२ वीं शताब्दी के काल में राजा कुमारपाल द्वारा निर्माण दृश्य देखते हुए यात्रीगण भक्तिभाव विभोर हो उठते हैं। करवाने का उल्लेख मिलता हैं । टींबाला गाँव में मिले हुए विक्रम संवत
यहाँ से ही १.५ कि.मी. पर तलाजा रेल्वे स्टेशन हैं । वहाँ से घोडागाडी | १२६४ के शिलालेख में "तलाजा महास्थान" का वर्णन हैं। विनयप्रभ मिलती हैं। पालीताणा ३८ कि.मी. दूर हैं। जहाँ से बस टैक्सी वगैरह मिल |विजयजी उपाध्याय ने तीर्थमाला स्तवन में भी इस तीर्थ का वर्णन किया हैं। सकती हैं। बस स्टेंड भी हैं। भावनगर से तलाजा बस चलती हैं। | यहाँ की प्रतिमा संप्रति काल की मानी जाती हैं। यहाँ पर आखिरी उद्धार
यहाँ पर विशाल धर्मशाला हैं। भोजनशाला भी चलती हैं। विक्रम संवत १८७२ में वैशाख सुदी तेरस के दिन करवाने में आया था।
श्री तालध्वज गिरि जैन श्वेताम्बर तीर्थ कमेटी, बाबु की जैन
धर्मशाला | यह प्रतिमा विक्रम संवत १८७२ में इसी गाँव की जमीन में से प्रगट हुई
मु. तलाजा, जिला - भावनगर (गुजरात) थी प्रतिमा प्रगट होते ही फैला हुआ रोग समाप्त हुआ और शान्ति का
पिन ३६४१४० टेलीफोन -३० वातावरण फैला इसका उल्लेख मिलता हैं। उसी समय से लोग प्रभुजी को 學聯參參參參參參參參參參參參參參參參參參參參參參參參參參參
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