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मूल नायक श्री जीरावला पार्श्वनाथजी हाल मूल नायक श्री नेमिनाथजी
श्री जीरावला पार्श्वनाथजी जैन देरासरजी
नये मूलनायक हाल में है और प्राचीन जीरावला पार्श्वनाथजी बाँये की और देरासर की बहार है। उनकी दाहिने और श्री शंखेश्वर पार्श्वनाथजी उनकी निकट में श्री नेमिनाथजी प्राचीन मूलनायक यहाँ २०० साल रहें हैं। उनकी प्रतिमा हैं । उनकी सामने की भमती में कमरे में जमीनमें से नीकले हुए महावीर स्वामी की बडी प्रतिमा है । यह बहुत प्राचीन है । प्राचीन जीरावला पार्श्वनाथजीकी प्रतिमा दूध और बालु की बनाई गई है। जो अद्भुत और विघ्नहर है। मंत्र साधना की सिद्धि देनेवाली है ।
वि.सं.३२६ मे कोडीनगर के शेठ श्री अमरासाने जीरावला पार्श्वनाथ का मंदिर बनवाया था आ. श्री देवसूरीजी म. ने भूमि में से प्रतिमाकी शोध की और अधिष्ठायक देवके मार्गदर्शन अनुसार यहाँ वि.सं. ३३१ में श्री देवसूरीजी म. के हस्तों से उसे
दीक्षा ग्रही प्रथम तीर्थ तमे ज स्थाप्युं, कै भव्यनुं कठण दुःख अनंत काप्युं; सेवा प्रभु प्रणमीओ प्रणये तमोने, मेवा प्रभु शिव तणा अर्को अमोने,
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श्री श्वेतांबर जैन तीर्थ दर्शन भाग-१
पथराई वि. सं. ६६३ में जेतासा खेमासा द्वारा श्री मेस्सूरिजी म. की निश्रा में और १०३३ में आ. श्री सहजानंदसू म. की निश्रा मे तेतलीनगर शेठ श्री हरदासजी ने उध्धार करवाया। हाल में मूलनायक श्री जीरावला पार्श्वनाथजी और भमति मे देरी की प्रतिष्ठा वि. सं. २०२० वैशाख सुद६ सोमवार के दिन संपन्न हुई। पं. तिलक बि. और वीर विजयजी म. के उपदेश से विजय हिमाचल सू.म. के वरदू हस्तों से प्रतिष्ठा संपन्न हुई । यहाँ । २०२० के पहले नेमनाथजी मूलनायक बैठे थे और २०० साल तक वे थे उसके पहले प्राचीन जीरावला पार्श्वनाथ मूल नायक थे। यह जगा अति रमणीय और शांतिदायक है । अवश्य यात्रा करने योग्य है बड़ी धर्मशाला भी है। भोजनशाला की सुविधा है। आबुरोड से ४८ कि.मी. है। रेवदर ५ कि.मी. है ता. रेवदर ।
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जयति शासनम
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