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________________ ४१०) मूलनायक श्री पद्मनाभ स्वामी हे । उपाश्रय के उपर के भाग में श्री अजितनाथजी का घर देरासर मूलनायक श्री पद्मनाभ स्वामी में शाके १६८४ सं. १८१९ है । उदयपुर में बावन जिनालय का देरासर भी प्राचीन है। यहाँ का लेख है। निकट में श्री आदीनाथजी की मूर्ति में सं. १८१७ में उपाश्रय में सं. १८१७ का लेख श्री गोरजी की गड़ी की निकट में श्री वर्धमान सूरीजी ने प्रतिष्ठा की थी पार्श्वनाथजी की प्रतिष्ठा है। गोरजी की गद्दी खाली है श्री चौमुखजी महावीर पर अशोक वृक्ष श्री तिलकसागर सूरिजी ने की थी मूलनायक के अलावा ६ बड़ी है। श्री शीतलनाथ जी के अलंकार बहुत ही सुशोभित है । जीस प्रतिमाजी पर सं. १८१७ का लेख है जिनचंद्रसू. म. अभयदेव में हिरा माणेक जडित अंक डगला मुकुट और कुंडल भी है। एक सूरीजी का लेख है। शासनदेवी के नीचे सं. १८१९ का लेख है। आंगी संपूर्ण सोने की है और एक चांदी की भी है। यह वाचन जीसमें श्री वर्धमान सूरी के श्री हीरसागरसूरी के वरद् हस्तों से जिनालय उदयपुर में सबसे बड़ा और पूराना है। श्री शीतलनाथजी प्रतिष्ठा संपन्न होने का लेख है। मूलनायक १३२ ईंच के है । श्री की आरस की चोविसी धातु के परिकर के साथ मूलनायक हैं। सहस्रफणा पार्श्वनाथजी का पट्ट है । सं. १८४७ का लेख है। श्री निकट में भगवान वासुपूज्य स्वामी है जो आरस के है और यह पार्श्वनाथजी की अद्भुत रचना है गर्भगृह और रंगमंडप में श्री बावन जिनालय और शीतलनाथजी के पहले के है रंगमंडप में श्री कुमारपाल महाराजा के समय की प्रतिमाजी है । निकट में विशाल संभवनाथजी के नीचे सं. १७८१ लिखा हुआ मालुम होता है। श्री उपाश्रय भी है। शेत्रुंजय पहाड़ के दृश्य की रचना आज से ४०० साल पहले की है. । पहाड़ पर आठ आरस की मूर्तियाँ त्रिगढ़ के उपर पित्तल के चौमुखजी और पद्मावती की एक बड़ी छत्री है। उदयपुरमें नंदीश्वर द्विप के नीचे पादुकाएं हैं। वहाँ सं १८४७ का लेख है। देवी चक्रेश्वरी की बड़ी मूर्ति के साथ देरी श्री श्वेतांबर जैन तीर्थ दर्शन भाग-१ LA MILLIT AN Mas H BURJAR मूलनायक श्री पार्श्वनाथजी ६. आयड़ BERNOU मूलनायक श्री आदीश्वरजी
SR No.002430
Book TitleShwetambar Jain Tirth Darshan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendrasuri
PublisherHarshpushpamrut Jain Granthmala
Publication Year1999
Total Pages548
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size114 MB
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