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राजस्थान विभाग : ३ उदयपुर जिला
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मंदिरो का उल्लेख किया है । पार्श्वनाथजी की प्रतिमा में सं. १८०१ का लेख है । आदीश्वर भगवान का भव्य मदिर है। यह मूर्ति महाराजा कुमारपाल के समय की है जिर्णोद्धार २०२१ में हुआ था १३ वीं सदी में महाराजा जयसिंह के समय में श्रावक हेमचंद्र ने समग्र आगम ग्रंथो को ताड़पत्र पर लिखवाये थे उग्र तप करनेवाले पू. आ. श्री जगच्चंद्र सू. म. को यह राजाने 'तपा' बिस्द प्रदान किया था तब से यह पूर्वका गच्छ "तपागच्छ'' के नाम से जाना जाता है । तपागच्छ कोई नया गच्छ नहीं है आचार्य श्री शास्त्रार्थमें अपराजित होने के कारण उन्हें राजाने "हिरला" का भी बिरुद दिया था श्री शांतिनाथजीकी प्रतिष्ठा १८१७ की साल की है दूसरे चार मंदिर भी यहाँ है जीसमें तीन १२ वीं सदी के है एक मंदिर में पू. जगच्चंद्रसूरीश्वरजी म. की मूर्ति की प्रतिष्ठा सं १९९५ में संपन्न हुई थी । यहाँ १९९९ में जिर्णोद्धार हुआ था और पू.आ. श्री नीति सू. म. के वरद् हस्तों से प्रतिष्ठा संपन्न हुई थी । उदयपुर स्टेशन १ कि.मी. है । उदयपुर से दर्शन करने आनेकी की सुविधा है।
आयड जैन देरासरजी सन्मुख द्दश्य
मूलनायक श्री पार्श्वनाथजी
इस तीर्थ में पू.आ. श्री बलिभद्र सू. म. के उपदेश से जैन धर्म अंगिकार करने वाले राजा अल्लुराज के मंत्री श्रावक ने पार्श्वनाथका मंदिर बनाया था और पू. आ. श्री यशोभद्र सू. म. के वरद् हस्तों से उनकी प्रतिष्ठा संपन्न हुई थी । यह विगत सं. १०२९ के पहले की है क्योंकि कवि धनपाल ने ११ वी सदी में "सत्यपुर मंडन महावीरोत्सव" में आयड तीर्थ बावन जिनालय
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७. केशरीयाजी - धुलेवा तीर्थ
मूलनायक श्री आदीश्वरजी
की अमुक जाति के अलग अलग शिवमंदिर आदि है पहले यह यहाँ श्री केशरीयाजी आदीश्वर का प्राचीन विशाल और आदीश्वरजी की मूर्ति यहाँ के निकट में डुंगरपुर के बाजु में आया अद्भुत कला-नक्कासी युक्त जैन देरासर है दर्शन करते समय हुआ बड़ोदा गाँव से वि. सं. ९७० में यहाँ लाई गई थी। इसलिये यैसा लगता है की भगवान हमारी सामने देखते हों । यह प्रतिमा उसे प्राचीन माना जाता है । जैन भोजनशाला है । धर्मशाला सिर्फ श्यामवर्ण की और बड़ी है । सब यह मानते है के यह मूर्ति बड़ी एक है, पर बहुत बड़ी है । ऋषभदेवजी पर सें गाँव का नाम चमत्कारी हैं श्वेताम्बर और दिगंबर के झगड़े वर्षों से चल रहे हैं। ऋषभदेव गाँव रखा गया है। गाँव की आबादी १० हजार की है यहाँ श्वेताम्बर जैनों के घर बहुत कम है । दिगंबर के ज्यादा है। । ऋषभदेवजी की मूर्ति बहुत मनोहर - प्रभावशाली और चमत्कारी वैश्नव समाज, सनातनी, आदिवासी आदि कोम अपने अपने ढंग मानी जाती है इस प्रतिमाजी को लंका में रावण द्वारा पूजी जाती से पूजा करते हैं । हिन्दु जब भगवान को थाल धरातें है उस समय थी। बाद में श्रीराम उसे अयोध्या में पूजते थे। बाद में उज्जैन में लहसुन डुंगली के अलावा कंदमूल और अन्य शाकभाजी भगवान । और फीर बडोदा में थी; वहाँ से सं.९७० में यहाँ लाई गई थी। को अर्पित करते हैं कभी लड़ाई झगड़ा हो जाता है । इस लिये। केशर चढाने की प्रथा है । इस लिये उसे केशरीयाजी केशरीयालाल यहाँ सशस्त्र पूलिस रहती है ताकिं जान हानी न होने पाय राणा के कहा जाता है । भील जाति के लोग उन्हे काला बाबा के नाम से समय में यह मंदिर का वहीवट राज्य सरकार द्वारा चलता था । पहचानते है। अब इसका वहीवट राज्य सरकार हस्तक है कंपाउन्ड में हिन्दुओं