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________________ १७६) श्री श्वेतांबर जैन तीर्थ दर्शन : भाग-१ A भोरोल तीर्थ मंडन - श्री नेमिनाथ भगवान यहाँ मंदिर में तीर्थनायक श्री नेमिनाथ प्रभु की श्याम पाषाण की भव्य प्रतिमाजी देखते हुए आँखें शीतलता का अनुभव करती हैं। बैठने के पश्चात उठने का मन नहीं होता हैं। २४ कुलिकाओं से सुशोभित यह मंदिर अत्यन्त भव्य हैं। उपाश्रय की भोजनालय, और यात्रीगणों से पवित्र बनी धर्मशाला इस तीर्थ की भव्यता में बहुत ही वृद्धि करती है। कार्तिक तथा चैत्र की पूर्णिमा को मेला भराता है। १२६१ में श्री नेमिनाथजी की प्रतिष्ठा श्री जयप्रभ सूरिजी ने की थी। १३०२ में अचलगच्छ के पुण्यतिलक सूरिजी महा. के उपदेश से पुजा शाह ने ७२ जिनालय बनवाये थे। ग्यारह वीं से सोलहवीं शताब्दी में इस स्थान पर आठ किलोमीटर के घेराव में पीपलपुर पट्टण नाम की आबाद नगरी थी। यहाँ पर ६० क्रोडाधिपति निवास करते थे। जैनों की बहुत बड़ी बस्ती होने से इस नगरी में से पीपलगच्छ की स्थापना हुई। श्री नेमिनाथ प्रभु की प्रतिमा कृषक को खुदाई करते समय दृष्टिगोचर हुई उस समय उनकी नासिका खंडित थी। इस कारण से वह प्रतिमा तालाब में विसर्जित करायी। फिर १९६० में प्रगट हुई। जिसको भोरोल गाँव में लाकर विराजित की। उस समय प्रतिमा में से अमृत झरता था जिस अमृत से मुनि श्रीरत्नविजयजी की नष्ट हुई आँखों को तेज मिला था। १५० से २०० वर्ष पूर्व समीप के वाव थराद वि. गाँवों से जैन श्रावक यहाँ आकर बसे थे। जिसमें मेता, वीरवाडीया, संघवी वगैरह अटक मुख्य थी। जैन श्रावक यथाशक्ति धर्माराधना करते थे। नेमिनाथजी की प्रतिमा की प्रतिष्ठा सं. १९९९ को पू. आ. श्री शांतिचन्द्र सू. म. के हस्तों से फा. सु. ३ को हुई। _ मंदिर का मूल से जीर्णोद्धार कराके २४ जिनालय बना है। उनकी अंजन प्रतिष्ठा सं. २०५२ वै. सु.७ को पू. राजतिलक सू. म. पू. महोदय सू. म. आदि के कर-कमलों से होगी। | MATALAAMANAS यहाँ आने वाले यात्रियों को निवास करने, भोजन, स्नान, पूजा-सेवा करने वगैरह की सुंदर व्यवस्था है। भोरोल आमें के लिए थराद से बसे आती जाती हैं। आव्यो शरणे तुमारा, जिनवर करजो, आश पुरी अमारी; नाव्यो भवपार मारो, तुमविण जगमां सार ले कोण मारी ? गायो जिन राज आजे हरख अधिकथी, परम आनंदकारी; पायो तुम दर्शनाशे, भवभय-भ्रमणा, नाथ सर्वे अमारी. भवोभव तुम चरणोनी सेवा, हुं तो मागुं छु. देवाधिदेवा; सामु जुओने सेवक जाणी, ओवी उदयरत्ननी वाणी.
SR No.002430
Book TitleShwetambar Jain Tirth Darshan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendrasuri
PublisherHarshpushpamrut Jain Granthmala
Publication Year1999
Total Pages548
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size114 MB
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