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राजस्थान विभाग ३ उदयपुर जिला
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हाल में सिर्फ चार है । महाराजा कुंभाजी का समय का देरासर है उदयपुर वि. सं. १६१६ में बसाया गया था । श्री सोमसुंदर सू. म. द्वारा अंजनशलाका की हुई मूतियाँ २-शेत्रुंजय, २ - गिरनार २- पावापुरी, २ - राजगृही, २ चंपापुरी, २-भूताला (जो यहाँ से १० कि.मी. दूर है।) २-खंडित, २-आबु, २-तारंगा आदि की अंजन शलाका वि. सं. १५०८ में की गई थी वैसा उल्लेख है । संवत १३३९ में आ. श्री यशोभद्रसूरी (रांडेरगच्छ ) म. ने करेड़ा बुंजडा सविना-सिसार और नाई में यह पांच जगे पर एक ही मुहूर्त में श्री पार्श्वनाथजी की प्रतिष्ठा संपन्न करवाई थी और पांच जगे पर प्रतिष्ठा करानेवाले शेठ और शेठानी भी एक थे ।
हुअ थे । जीन्हों नें शेत्रुंजयका १६ वाँ उद्धार किया था । राय कोठारी गोत्र कर्मा शाह भी १५८७ में कावेरीया गोत्रीय बने थे । यह कर्मा शाह के वंश में भामा शाह पैदा हुए थे। उनके छोटे भाई ताराचंदजी को जब सादडी (घाणेराव ) की जागीर मिली थी । यह ताराचंदजी जब स्वर्गवासी हुए तब उनके साथ १३/ व्यक्ति ने अपनी जान अर्पण की थी यह थे मोर-घोडी - कुत्ता-शेठानी-नायी सेवक-सेविका-दासी आदि उपरवाली माहिती हमें गुरशम राजमलजी गमरलाल उमर ८१ वर्ष उनसे मीली थी । यहाँ के मंदिर बप्पारावल के वंशज देवादित्य देलवाड़ा बसाया था । सुपार्श्वनाथ (हलदीघाटी) देलवाडा में है (सं. १०३२) जैनों के २५० घर है । यह स्थान उदयपुर से २६ कि.मी. दूर है ।
गोपाल गिरि = ग्वालियर के राजा जो तोमार वंश के थे उसे उपदेश देनेवाले श्री बप्पभट्टि सू. म. थे उनको ९२६ में उपदेश दिया था । इसी आमराजा के तोमार वंश में श्री कर्मा शाह
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मूलनायक श्री पार्श्वनाथजी
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१०. खमनोर
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खमनोर जैन देरासरजी