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श्री श्वेतांबर जैन तीर्थ दर्शन : भाग-१
९. देलवाडा - उदयपुर
देलवाडा जैन देरासरजी
मुलनायक श्री आदीश्वरजी
मूलनायक श्री पार्श्वनाथजी दूसरे देरासर में श्री आदीश्वरजी
देवकुल पाटण (दलवाडा) मेवाड़ । १ श्री पार्श्वनाथजी मूलनायक की प्रतिष्ठा सं. १४८४ में हुई थी । बावन जिनालय है । पर सब में मूर्तियाँ नहीं है । दाहिने और श्री अभिनंदन स्वामी है उसके नीचे सं. १४८४ का लेख है । निकट में दो काउस्सग्गिया है और उसकी निकट में दूसरा पार्श्वनाथजी का देरासर है । जहाँ मूलनायक की निकट में पार्श्वनाथजी के दो काउस्सग्गिया है । उसके नीचे एक पूँयहरा है । देरासर बहुत प्राचीन है । पूँयहरे में राजा संप्रति के समय की १३ प्रतिमाजी है । श्री कुंथुनाथजी के नीचे सं. १४९४ का जिर्णोद्धार का लेख है। श्री महावीर स्वामी के नीचे भी सं. १४९४ का लेख है।
श्री आदीश्वर भगवान का जिर्णोद्धार का काम चल रहा है । भमति के सब भगवान प्राचीन है । मूलनायक श्री आदीश्वरजी के गर्भगृह में श्री पार्श्वनाथजी के दो काउस्सग्गिया है । रंगमंडप में भगवान की पादूका की दोनों ओर नाग ओर मोर दर्शन करते दिखाई देते है । उपर के कल्पवृक्ष में सं. १४९१ का लेख है । श्री
आदीश्वरजी के नीचे जो लेख है । वह जिर्णोद्धार हुआ था । यह बताता है । सं. १४६९ की साल लिखी गई है । मूलनायक की प्रतिमा महाराजा कुमारपाल के समय की है। श्री आदीश्वरजी की प्रतिष्ठा सं. १४८४ में हुई थी । आ. श्री सोमसुंदर सू. म. के वरद् हस्तों से प्रतिष्ठा संपन्न हुई थी श्री संतिकरं स्तोत्र आ. श्री सोमसुंदर सूरी ने यहाँ बनाया था । यहाँ पहले ३०० जिन मंदिर थे
कल्पवृक्ष
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