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श्री श्वेतांबर जैन तीर्थ दर्शन : भाग-१
मूलनायक - श्री शान्तिनाथजी इतिहास के अन्धकार को उलीचते हुए दृष्टि पड़ी हैं। दरिया की खाड़ी के काठे-बसा हुआ एक छोटा सा गाँव १५०० वर्ष के काल के झपेटों को खाकर मूलरुप खोकर बैठा हुआ आगे मीठापुर' जो आज का बजाणा, महमद बेगडा को वफादारी बतलाते जैन लोगों को २४ परगणे मिले थे। उनमें से यह गाँव व्यापार का केन्द्र था। कहा जाता हैं कि एक बजाज (कपड़े का व्यापारी) विद्या के बल से सुपडे में बैठ कर उडा। उसके प्राण यहाँ निकल गये इसलिए इस गाँव का नाम बजाणा पड़ा।
महत्त्व - ४०० वर्ष पूर्व निर्मित यह प्राचीन मंदिर हैं जिसमें प्रतिमायें संप्रति महाराज के समय की भराई हुई हैं। सुन्दर मांडवी पर तीन प्रतिमायें हैं। साधु साध्वीओं का बड़ा भारी विहार है ।पांजरा-पोल वर्षो से चलता है।
यहाँ के मंदिर का अन्तिम जीर्णोद्धार वि.स. २००७ आ.श्री सुबोध सागरसूरिजी म.की निश्रा में हुआ है । जैनों के पाँच घर हैं। शंखेश्वर सुरेन्द्रनगर ध्रागंध्रा क्रॉस रोड पर हैं। पास में पाटडी उपरीयलाजी शंखेश्वर तीर्थ हैं।
११. उपरीयालाजी तीर्थ
उपरीयालाजी जैन मंदिर
શ્રીઆ , ભગવાન
श्री आदिनाथ भगवान
मूलनायक-श्री आदिनाथजी
वर्षों पूर्व इस विस्तार में घना जंगल था। रत्नाभाई कुंभार को इस स्थल में प्रतिमा हैं उनकों स्वप्न आया। खुदाई करते समय अभी जहाँ पर धर्मशाला है, उस स्थान से ही प्राचीन प्रतिमायें मिली हैं। उनमें संप्रति महाराज के समय की प्राचीन प्रतिमा एक मिली है ।भव्य शिखरबन्द मंदिर बनाकर उसकी प्रतिष्ठा वि. सं. १९१९ वै.सु. १० को की है। यहीं की भूमि में से दूसरी तीन प्रतिमायें मिली हैं, जो धातु की कायोत्सर्ग प्रतिमायें है।
अन्तिम जीर्णोद्धार वि.स.१९४४ माघ सुदी १३ महोत्सव पूर्वक उजवाया, दीवाल, छत, गुम्बज ऊपर काँच का भव्य रमणीय काम हुआ हैं। ८६ वर्ष से अखंड ज्योति चालु हैं। यह प्राचीन तीर्थ है। वि.सं.१५ वी सदी पूर्व के ग्रन्थ में उल्लेख हैं।
धर्मशाला, भोजनशाला की सुन्दर व्यवस्था है। विरमगाव रोड पर आया हुआ है। विरमगांव खाराघोड़ा रेल्वे मार्ग पर पाटडी गाँव से १० कि.मी. है।
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