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________________ गुजरात विभाग : २ - जुनागढ जिला (४१ ETTE प्रथम टोंक यह मंदिर १९०/१३० फुट लम्बे चौड़े विशाल चौक के मध्य में रमणीय मल्लकी टोंक, सती राजुल की गुफा, दूसरी चौमुखी ट्रॅक, चोरीवाला मंदिर, पहाड़ों से सुशोभित हैं मंदिर के सामने के भाग में मानसंग भोजराज की टंक गौमुखी गंगा, चौवीस जिनेश्वर की पादुकायें हैं। ऊपर की सभी टोंके हैं। वहाँ पर मूलनायक संभवनाथ भगवान हैं। मंदिर के चौक में कुंड है जहाँ श्वेताम्बरों की हैं। गौमुखी गंगा से आगे एक रास्ता सहसावन तरफ जाता पर आगे मेरकवसीटोंक हैं। उसमें मूलनायकश्रीसहस्रफणपार्श्वनाथ भगवान जहाँ नेमिनाथ भगवान की दीक्षा तथा केवलज्ञान कल्याणक का स्थान हैं हैं । इस ढूंक में आदिनाथ भगवान की विशालकाय प्रतिमा हैं। आगे संग्राम भगवान की चरण पादुकायें हैं। अभी वर्तमान में इस स्थान पर (सहसावन मे) सोनी की ट्रॅक आती हैं। बाद में तेरहवी सदी में निर्मित कुमारपाल की टंक समोसरण मंदिर तैयार हुआ हैं। उसमें दूसरे चौमुखजी की प्रतिष्ठा की हैं। जैन आती हैं। मूलनायक अभिनंदन स्वामी भगवान हैं। इसढूंक के पास भीमकुंड धर्मशाला बना है। यहां पर प्राचीन प्रतिमाजा विराजमान की है और गजपदकुंड हैं। मुख्य मार्ग पर आगे जाने पर वस्तुपाल तेजपाल की टंक महोत्सव पू. आ. श्री विजय हिमांशु सूरिजी म. की निश्रा में हुआ हैं। गाँव के आती हैं शिलालेख के उल्लेख अनुसार विक्रम संवत १२८८ में बनी हई थी। देरासर में से भगवान की प्रतिमा यहाँ पर लायी गई हैं। यहाँ पर तीन मंदिर हैं। - (१) स्तंभन पुरावतार पार्श्वनाथ (२) ऋषभदेव मुख्य सूचना - श्री गिरनार जी महातीर्थ के जीर्णोद्धार की कारीगिरी | भगवान का मुख्य मंदिर हैं और (३) महावीर स्वामी का मंदिर हैं। पीछे से श्री विक्रम संवत १९७९ में हुई हैं। गणधर के पादुकाओं की एवं देरीओं का शामला पार्श्वनाथ की प्रतिमा विराजमान की होगी। प्रतिमा पर विक्रम संवत जीर्णोद्धार संवत १९९३ में हुआहैं। गौमुखी गंगाके आगे के मुख्य मार्ग पर श्री १३५० का लेख हैं। टोंक में से बाहर निकलते मुख्य मार्ग पर श्री संप्रति राजा अम्बाजी की टोंक आती हैं। यह टोंक मुख्य टोंक से ३०० फीट ऊची हैं। की ट्रॅक आती हैं। मूलनायक श्री नेमिनाथ भगवान हैं। उसके बाद चौमुखीजी अम्बाजी श्री नेमिनाथ की अधिष्ठायिका हैं। मंत्री श्री वस्तुपाल तेजपाल ने यह श्री संभवनाथ भगवान की टोंक, ज्ञान बावडी, धरमशी हेमचन्द्र की टोंक, मदिर बनवाया है। NE Emakal ना FORE MPMJMLMAPrma
SR No.002430
Book TitleShwetambar Jain Tirth Darshan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendrasuri
PublisherHarshpushpamrut Jain Granthmala
Publication Year1999
Total Pages548
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size114 MB
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