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________________ (१८०) 麗麗邋邋邋邋邋邋邋麗麗辘辘 १. कंबोइ तीर्थ मूलनायक जी श्री मनमोहन पार्श्वनाथजी मूलनायक जी श्री मनमोहन पार्श्वनाथजी मूर्तियों के शिलालेख वि. सं. १५०४, १५०५ का हैं। सन १६५९ में मोगल सम्राट अकबर प्रतिबोधक पूज्य आ. श्री विजय हीर सूरिजी म. की निश्रा में अंजन शलाका प्रतिष्ठा हुई है। सम्प्रति राजा के समय की प्रतिमा है। दो जीर्णोद्धार वि. सं. १४६८ वि. सं. २००३ में हुए हैं। और सुन्दर रंगरोगन हुआ है। श्री श्वेतांबर जैन तीर्थ दर्शन : भाग-9 कंबोई तीर्थ जैन मंदिर कहा जाता है कि कभी-कभी रात में घन्टा ध्वनि, झांझर की झनकार नाटारंभ धूप की खुशबू फैलती है। थोड़े वर्षों पूर्व पू. आ. श्री भक्ति सूरीश्वरजी म. सा. शिष्यों के साथ पधारे थे तभी बाजे, नगारे घन्टा ध्वनि दोपहर में हुए। बहुत मनुष्यों ने सुनी । T व्यवस्था - सेठ लालभाई के सुपुर्द है। सं. २००१ से कमेटी व्यवस्था करती है। २. हारीज सुन्दर धर्मशाला, भोजनशाला, भाता खाता स्थायी चालू है। मेहसाणा से राधनपुर से बस जीपें मिलती हैं। मूलनायक श्री नेमिनाथजी काँच का सुन्दर नक्काशी का काम है। पाटण से जगराड गाँव से लायी । प्राचीम प्रतिमाजी है। पहले इस विस्तार में मंदिर था। पास में गादला गाँव में से खुदाई का काम करते समय प्राचीन खंडित प्रतिमाजी मिली है। जैनों के ७० घर हैं। 麗麗麗麗麗麗麗麗辘辘辘辘辘辘
SR No.002430
Book TitleShwetambar Jain Tirth Darshan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendrasuri
PublisherHarshpushpamrut Jain Granthmala
Publication Year1999
Total Pages548
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size114 MB
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