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श्री श्वेतांबर जैन तीर्थ दर्शन : भाग-१
-१२
१७५ से २०० घर है। वर्तमान में २५ से ३०घर हैं। गाँधीधम से भद्रेश्वर तीर्थ होकर गुंदाला पास से भुज को आती हुई सड़क पर पत्री से आगे आत्ता हैं।
भद्रेश्वर तीर्थ से ३० कि.मी. हैं। वर्धमान तत्वज्ञान जैन विद्यालय, वांकी तीर्थ, ता. मुन्द्रा-जिला कच्छ पिन ३७०४२५ फोन ४०-२२
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१४. अंजार
मूलनायक श्री वासुपूज्य स्वामी
अंजार जैन मंदिर जी→
मूलनायक जी - श्री वासुपूज्य स्वामी पेढ़ी - श्री अंजार तपगच्छ जैन संघ,शास्त्री रोड, अंजार गच्छ।
अंजार- श्री वासुपूज्य स्वामी के मुख्य मंदिर के मैनेजिंग ट्रस्ट श्री युत मनुभाई देव राज शाह (पडाणा हालार वाला) प्रमुख श्री उपरान्त ट्रस्टी श्री । हीरालाल प्रेमचंद संघवी से यहाँ की ऐतिहासिक माहिती नीचे लिखे अनुसार मिली है।
मूलनायक -श्री वासुपूज्य स्वामी की प्रतिमा प्राचीन, अत्यन्त भव्य एवं आकषर्ण उत्पन्न करने वाली हैं। ऊपर के तल में मूलनायक श्री आदीश्वर है। नीचे तीन गर्भद्वार हैं। आरस की प्रतिमा २५ उपरान्त एक आरस की चौमुखीजी है। यहाँ धातु की छुटे प्रतिमा जी ऊपर संवत १५१२ का लेख हैं। दूसरी एक धातु प्रतिमा ऊपर १५६५ का लेख है। तीसरी एक धातु की पंचतीर्थी ऊपर संवत १४२६ का लेख है। एक धातु के छुटा प्रतिमा जी ऊपर १५१२ का लेख है। एक धातु की छोटी प्रतिमा जी ऊपर १५३२ का । लेख है। एक पंचधातु की प्रतिमाजी परिकर सहित श्री महावीर स्वामी की हैं। उसके ऊपर संवत १४२६ कार्तिक सुदी१५ का लेख है। इस मंदिर का मूल प्राचीन शिललेख मिलता नहीं है। इस मंदिर को संवत २०१२ के अषाढ़ सुद १४ की रात्रि में ९ बजे अंजार में हुए भयंकर धरती कंप के कारण
नुकसान पहुंचा था। इससे उसका जीर्णोद्धार संवत २०१६ माघसुदी १० रविवार को हुआ। यह प्रतिष्ठा प. पू. आ. श्री विजयकनक सूरीश्वरजी म. की निश्रा में हुई है।
यह मूलनायक श्री वासुपूज्य स्वामी के मुखकमल ऊपर गुलाबी झाय दिखती है। और खूब ही सुन्दर एवं आकर्षक दिखाई देती है। इस मंदिर के कम्पाउन्ड में तीन देरिया हैं। इनमें मध्य की देरी में श्री गौतम स्वामी, श्री जितविजयदादा तथा पूज्य आ. विजयानंद सूरीश्वरजी हैं। इसके दायी बाजू एक देरी पर प. पू. श्री विजयकनक सूरीश्वर की मूर्ति है । गौतम स्वामी की बायी बाजू मणिभद्र वीर की देरी है। यह मंदिर २५० वर्ष ऊपर का हैं।
अंजार शहर ५०० वर्ष हुए बसा है। अंजार मंदिर के चौगान में बाजू में नवीन उपाश्रय तीन माला का नमूनेदार है। बगल में आयंबिल भवन है। और । तीन रूम की छोटी धर्मशाला है।
एक पाठशाला ११० की संख्या वाली चलती है।
दादावाड़ी में ऊपर मूलनायक विमलनाथ भगवान की मूर्ति अत्यन्त प्राचीन है । यह मूर्ति जोधपुर (राजस्थान) से लायी गयी है। अंजार श्री सुपार्श्वनाथ की सं. १८१६ जेठ सु. १३ को प्रतिष्ठा हुई है। जैनों के १६० घर हैं।