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राजस्थान विभाग ६ जेसलमेर जिला
मूलनायक श्री चिंतामणि पार्श्वनाथजी
यह मंदिर जेसलमेर गाँव की निकट में छोटी पहाड़ी पर किले में है । रावल जेसलजी ने अपने नाम पर से यह किला का निर्माण किया था । इसे सं. १२१२ में बनाया था । उनके भतिजे भोजदेव की गद्दी लोद्रवा में थी । चाचा भतिजे के बिच में अनबन होने से जेसलजी ने महंमद घोरी के साथ संधि करके लोद्रवा पर चढ़ाई की थी। भोजदेव और हजारों योद्धा की मृत्यु हुई और लोद्रवा बेरबिखेर हो गया ।
लोद्रवा से श्री चिंतामणि पार्श्वनाथजी यहाँ लाये गये थे । लोद्र राजपुतों की राजधानी लोद्रवापुर में थी यह राज्य सगर राजा के आधिन था। उनके पुत्र श्रीधर और राजधर जैनाचार्य से उपदेश पा कर जैन धर्मी बन गये थे । और उन्होंने यह चिंतामणि पार्श्वनाथजी का मंदिर बनाया था। प्रतिभाजी पर सं. २ का लेख है । यह लेख २००० साल से भी प्राचीन है । यह प्रतिमाजी जेसलमेर लाने के बाद १२६३ में फाल्गुन सुद ३ के दिन आ. श्री जिनपति सूरीश्वरजी द्वारा प्रतिष्ठा संपन्न हुई। यह उत्सव श्रेष्ठि श्री जगधरने बड़ी धामधूम से मनाया था । आ. श्री जिनपति के बदले श्री जिनकुशल सू. म. के हाथों से प्रतिष्ठा हुई थी। ऐसा भी कहा जाता है । उसके बाद १४५९ में श्री जिनराज सू. म. के उपदेश से मंदिर का प्रारंभ हुआ और १४७३ में श्री जिनवर्धन सू. म. के वरद् हस्तों से राउल लक्ष्मणसिंह के राज्यकाल में रांका गोत्रीय श्री जयसिंह नरसिंह द्वारा प्रतिष्ठा संपन्न हुई थी। तब से इसका नाम लक्ष्मण विजय मंदिर रखा गया है।
यह मुख्य मंदिर है। दुसरे मंदिर १६ वीं सदी में बने थे। यहाँ लगभग २७०० जैन परिवार थे और धर्म का केन्द्र था । शिल्पकारों ने भी यहाँ अपनी कला का बड़ा भारी प्रदर्शन किया है । मंदिर और मकानों पर भी उत्कृष्ठ कला के नमुने देखने को मिलते है। यहाँ के पीले मजबुत पथ्थरों पर सुक्ष्म कला कि अद्भुत नक्काशी देखने को मिलती है।
यहाँ की कला को देखकर आबु देलवाड़ा-राणकपुर, खजुराहो की कला की तुलना कर सकते है। जेसलमेर में श्री चिंतामणि पार्श्वनाथ मुख्य है। उसकी भमति में एक प्रभुजी को दाहिने और २४ देव देवियों की मूर्तियाँ है जो आरस की है। यहाँ सं. १४७१ का लेख है । मंदिर की भमित में अमुक प्रतिमा यहाँ के पीले रंग के आरस की बनाई गई है।
२ श्री शितलनाथजी का देरासर की प्रतिष्ठा सं. १४९९ में संपन्न हुई थी। हाल में मूलनायक श्री शांतिनाथजी है।
३ श्री संभवनाथजी देरासरजी की प्रतिष्ठा सं. १४९८ में संपन्न हुई थी। श्री जिनदत्त सू. म. के कपड़े अंक संदूक में बड़ी देखभाल से रखे गये हैं सहस्त्र फणा लोद्रवा पार्श्वनाथजी की प्रतिष्ठा सं. १६७५ में संपन्न हुई थी । भूयहरे में जो ज्ञान भंडार है । वह जिनभद्रसूरि ज्ञान भंडार है । यहाँ एक जगे पर छोटे
पार्श्वनाथजी है, स्फटिक महावीर स्वामी, कसोटी के पार्श्वनाथजी, सुखड़ की प्रतिमाजी, सिद्धचक्र सच्चे मोती के है । धरणेन्द्र पद्मावती सहित पार्श्वनाथ और महावीर स्वामी जन्म माता सहित पूराने रंगीन फोटोग्राफ है जिनभद्रसूरी भंडार में ४२६ आगम ताड़पत्र पर लिखी हुई एल्युमिनियम की पेटी में रखी हुई है। तीन धातु का रंगीन कल्पवृक्ष है । सरस्वति का बड़ा पट्ट है । आगम प्रभाकर श्री पूण्य विजयजी म. सा. ने यह सब का संशोधन कार्य किया है। उनका भी यहाँ फोटु रखा है । ४२६ आगम की ताड़पत्र की पेटी यहाँ से दूसरे भूयहरे में है । यहाँ चिंतामणि की भगति में एक बड़ा लेख है। संभवनाथजी के मंदिर में भमित के पीछे तीन चौमुखजी एक दूसरे के उपर है । वहाँ १५१८ का लेख है । यहाँ एक शिलालेख भी है। सं. १५०५ की साल एक महायंत्र में लिखा है । ४ श्री शांतिनाथजी मंदिर है। पंचधातु के पंचतीर्थी बड़े है । यह शांतिनाथजी की प्रतिष्ठा सं. १५८३ में संपन्न हुई थी यहाँ नीचे एक बड़ा लेख है ।
५ अष्टापदजी का देरासरजी है।
६ एक देरासर पर ताला लगाया हुआ है। अंदर जाने का कोई प्रबंध न होने से बहार से दर्शन करने पड़ते है।
७ श्री चंद्रप्रभस्वामी का अद्भुत नक्कासीवाला प्राचीन मंदिर है। ८ श्री ऋषभदेवजी का देरासर है जीसमें रंगमंडप में भरत बाहुबली की मूर्ति काउस्सग्गिया की नीचे है। सं. १५३६ का लेख भी है ।
९ श्री महावीर स्वामी का देरासर प्राचीन है जो उपर के सब देरासरों से अलग आया हुआ है। श्री शेत्रुंजय महा तीर्थ के बाद इतनी सारी प्रतिमाजी सिर्फ यहाँ ही देखने को मिलती है ।
यहाँ के ज्ञान भंडार के नाम नीचे दिये है।
१ श्री ब्रह्मभंडार - किले के मंदिर में २ तपागच्छीय भंडारआचार्य गच्छ के उपाश्रय में ३ बृहतखरतर गच्छीय भंडारभट्टारक गच्छ के उपाश्रय में । ४ लोकागच्छिय भंडार-लोका गच्छ के उपाश्रय में । ५ डुंगरशी ज्ञान भंडार-डुंगरशी उपाश्रय में । ६ थी शाह भंडार थीरशाह शेठ की हवेली में है ।
यहाँ के धीरशाह शेठ, संघवी श्री पांचा शेठ, संडासा शेठ, जगधर आदिने धर्म के बड़े काम किये है। धीरुशाहने शेत्रुंजय का संघ निकाला था और लोद्रवपुर तीर्थ का अंतिम जिर्णोद्धार भी किया था। संघवी श्री पांचा शेठ ने शेत्रुंजय के १३ दफा संघ निकाले थे । शेठ संडासाने किला बनाया था। और मंदिर के लिये मुलतान जाने की कथा बहुत रोचक है। धर्मशाला और भोजनशाला है । किले पर भी धर्मशाला है । जोधपुर से बाडमेर रोड है । धर्मशाला से रेल्वे स्टेशन १.१/२ कि.मी. दूर है। किले के मंदिरो से स्टेशन करीब २ कि.मी. के अंतर पर है । श्री जेसलमेर लोद्रवापुर पार्श्वनाथ जैन श्वेताम्बर ट्रस्ट जैन मंदिर जेसलमेर फोन नं. ३०
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