________________
श्री श्वेतांबर जैन तीर्थ दर्शन : भाग-१
----
-
-
----
-
---
--
२. ब्रह्मसर
ब्रह्मसर जैन देरासरजी
मूलनायक श्री पार्श्वनाथजी
मूलनायक श्री जगवल्लभ पार्श्वनाथजी
यहाँ के अमोलकचंदजी माणेकलालजी ने यह देरासर बनाकर सं. १८८४ में प्रतिष्ठा करवाई थी। फीरसे सं. १९४४ में मोहन मुनिके वरद हस्तों से प्रतिष्ठा संपन्न हुई थी वह मूर्तिको जेसलमेर के किलेसे लाई गयी है । १.१/२ कि.मी. दादावाडी है छोटी धर्मशाला है।
जेसलमेर १३ कि.मी. दूर है । यह स्थान जेसलमेर - बागरा मार्ग पर है । जेसलमेर की पेढी द्वारा वहीवट चलता है ।
S
*
+0-0-04
Fooo
३. अमरसर
मूलनायक श्री ऋषभदेवजी
श्री ऋषभदेवजीका मंदिर सं. १९२८ में पटवा हिंमतरामजी बाफनाने बनाया था । श्री जिनमहेन्द्रसूरिजी म. के वरद् हस्तोंसे ईनकी प्रतिष्ठा संपन्न हुई है । मूल देरासरजी की नक्कासी अद्भुत है । हालमें जिर्णोद्धार का काम चलता है । यहाँ जेसलमेरकी बारिक नक्कासी वाला यह देरासर गाँव बाहर है | रोडसे थोड़ा चलना पडता है | बाफना कुटुंबवालोने अकेलेही यह देरासर बनाया है । बाजुमें थोडी सी जगा है । जो बाफना शेठकी है। शेठजी की मूर्तिमें सं. १९२८ माघ सुद १३ का लेख है। यह देरासर श्री जिवनलाल बाफनाने बनाया है। उसके पीछे एक बड़ा - - - ---
तालाब है ।उसके सामने ओसवाल पंचायत का मंदिर जो डूंगरसिंह जति के नामसे पहचान जाता है । उस समये मुस्लिम आक्रमण चालु था । लडाई बंध होने के बाद विक्रमपुर से यह मूर्ति वापस ले आये थे । यह विशालकाय मूर्ति पर वि. सं. १५१४ का लेख है। पीछे के भाग में जतिने इलमसे बनाया हुआ एक कुँआ है । कम्पाउन्डमें जिर्णोद्धार का सं. १९०३ का लेख है । बाग में जतिने उपाश्रय किया था। इसके सामने रास्ते पर एक जिनमंदिर है । जो शेठश्री सवाईरामजी प्रतापचंदजी का है । जैन धर्मशाला रोड पर है। जेसलमेर स्टेशन ३ कि.मी. दूर है । जेसलमेर-लोद्रवा रोड पर है। - -ब-ब बस