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________________ ३१२) व त्र सुरत १०८ तीर्थ मूलनायक श्री सुविधिनाथजी ॐ अहं महावीर महावीर, प्रभु महावीर गुण गावो रे वीर प्रभु नुं स्मरण करीने, भव सागर तरी जावो रे रोमे रोमे महावीर महावीर नित्य नित्य भजीये भावे रे ; श्वासे श्वासे महावीर भजिये, तो महावीर गुण आवो रे, हरतां फरतां महावीर महावीर, महावीर ध्यान न छोडो रे, उठतां-बेसतां खातां पीतां, महावीर थी मन जोड़ों रे, वीर प्रभुनु ध्यान ज धरतां, आत्म ज्योति जागेरे, आभव ने परभवना सखे, अंतर बेरी भागेरे, वीर प्रभु शरण सांच, बीजे क्यांई न राचोरे, गुरुजी अक ज राह बतावे, महावीर मारण साचोरे, ॐ अर्हं महावीर महावीर प्रभु महावीर गुण गावोरे ॐ आई १ ॐ अहं २ ॐ अर्ह ३ ॐ अर्ह ४ ॐ अर्ह ५ सुरत-आजम मंदिर मूलनायक श्री महावीर स्वामी जानना ओ दीवडा ने श्री श्वेतांबर जैन तीर्थ दर्शन : भाग-१ - ༥ནས་ཕསསན་སོ वीरे झगमग राख्या रे, त्रण लोकना नाथे सौना, तिमिर टाली नांख्या रे, ज्ञानना....१ डगले पगले रंग राग मां, भान भूली सौ महाले, द्वेष क्लेष ने वेर झेर मां दिव्य जीवन ने गाले रे, ज्ञानना. २ स्वप्न सरीखी झूठी माया, रंग पतंग जिम काया माया, मोह मदिरा पान करावी. करमे नाच नचाया रे ; ज्ञानना... ३ माया ममता दूर तजे ते, चोरासी नव रूले समता मांही रमता ते तो परमातम पद झुले रे, ज्ञानना....४ काण अनंत हुं धमीयो तोदे, आशा न पुरी थई, सुखड़ा ने दुःखडानी वातो. जेवी तेवी रही है, ज्ञानना....५
SR No.002430
Book TitleShwetambar Jain Tirth Darshan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendrasuri
PublisherHarshpushpamrut Jain Granthmala
Publication Year1999
Total Pages548
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size114 MB
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