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________________ ४१८) श्री श्वेतांबर जैन तीर्थ दर्शन : भाग-१ दयाल शाह किला जैन देरासरजी (श्री दयाल शाह का किला) के अलावा सब समार काम चालु है । यहाँ मूलनायक के पीछे मूलनायक श्री चौमुखजी आदिनाथजी माले पर जाने की सीढ़ी है । जीसके नीचे एक मुँयहरे में चार श्री आदिनाथ चौमुखजी मुलनायक हैं । महाराणा राजसिंह के प्रतिमाजी है । जो राजा सांप्रति के समय की मानी जाती है । रराज्यकाल में सं. १७३२ शाक १५९७ वैशाख सुद ७ गुस्वार के | सं.१४८६ का एक लेख भी है । भमति में एक दूसरा ऋषभदेवजी दिन श्री दयाल शाहने यह नौ मंझिला मंदिर बनवाया था। हाल में | के नीचे १४४१ का लेख है। श्री विजय प्रभसूरीजी म. की प्रतिमा यहरा के साथ तीन मंझिल है । बादशाह औरंगझेब के समय में | के नीचे सं. १७८२ का लेख है । यहाँ नव प्रतिमाजी आ. श्री ईसे राजा का महल समझकर बाकी मंझिल तोड दी थी । गोरजी | भूवनभानु सू.म. द्वारा अंजन किया गया है और भी पाँच प्रतिमाजी. के द्वारा प्रतिष्ठा संपन्न हुई थी । रंगमंडपमें प्रायः सो स्तंभ है । प्राचीन है । दयाल शाह के प्रथम पत्नी सूर्यद और द्वितीय पली मंदिर पहाडी पर है २५० पगथी है । इस मंदिर को दयालशाह | पाटमदे और उनके पुत्र शाँवलदास और पली मृगादे । समस्त जीर्थराज या दयाल शाह किला के नाम से जाना जाता है । उपर | परिवार सह कल्याण सागर सूरी के पट्टधर श्री सुमतिसागर सूरी के भागमें बनाई हुई प्रतिमा (श्री आदिनाथजी) श्वैतांबर जैन और उनके पट्टधर विनय सागर सूरीजी ऐसा लेख है । दयालशाह तिमा ३ फूट से ज्यादा दिखती है | सामने पूंडरीक स्वामी का | के पिताजी राजाजी और माताजी रयणादे के चार पुत्रो में से मंदिर है जहाँ प्राचीन पूंडरीक स्वामी है । दाहिने और विमलनाथ | दयालशाह चौथे पुत्र थे उनको संघवी की पदवी मिली थी । और बाँय ओर संभवनाथजी सं. २०३५ में प्रतिष्ठित हुआ है । ओशवाल के सुखपरिया वंश के तेनाजी का यह परिवार माना उनके दाहिने ओर शेर्बुज्य पट्ट और बाँये ओर गिरनार पट्ट सं. | जाता है । २०३३ रंगीन है पू. श्री दानसूरीजी म. आ. पू. प्रेमसूरी म. के पू. दूसरे काउस्सगिया में विजयगच्छ आचार्य का सं. १४६४ का आ. हीरसूरी म. द्वारा विमलनाथ और संभवनाथजी की प्रतिष्ठा | लेख है । चौमुखजी के मुख्य भगवान आदिश्वरजी पूर्वाभिमुख है। संपन्न हुई है । प्राचीन नगाड़ा ४ फूट के व्यास से भी बड़ा है । कांकरोली से यह तीर्थ ५ कि.मी. राजसमंदर से १.१/५ इस मंदिर के सामने दूसरा मुँयहरा है । वहाँ प्राचीन खंडित मूर्ति | कि.मी. और उदयपुर से ६० कि.मी. की दूरी पर है। । बाजु में विशाल सरोवर है । जो पानी से भरा हुआ है प्रतिष्ठा
SR No.002430
Book TitleShwetambar Jain Tirth Darshan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendrasuri
PublisherHarshpushpamrut Jain Granthmala
Publication Year1999
Total Pages548
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size114 MB
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