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श्री शीतलनाथ
श्री महावीर स्वामी
श्री वासुपूज्य स्वामी
मूलनायक श्री वासुपूज्य स्वामी
१. सायरा
मूलनायक श्री वासुपूज्य स्वामी
राणकपुर से उदयपुर आते समय बिच में सायरा गाँव में श्री वासुपूज्य स्वामी का शिखरबंध देरासर आता है। यह ४५० साल पूराना है। बालकेश्वर मुंबई से यह मूर्तियाँ सं. १९६० में लाई गई थी। अंतिम जिर्णोद्धार सं. २०३७ में संपन्न हुआ था। यह तीर्थ का कारोबार यहाँ का संघ चलाता है। यहाँ जैनों के ३२ घर है । जैन धर्मशाला और आयंबील खाता चलता है । दूसरा श्री शांतिनाथजी का शिखरबंध देरासर है। यह मंदिर गाँव की बिच में है । इसकी प्रतिष्ठा सं. १९९५ में संपन्न हुई थी । श्री वासुपूज्य स्वामी की प्रतिष्ठा भी सं. १९९५ में संपन्न हुई थी । मूलनायक ३ प्राचीन है । गाँव में शांतिनाथजी भी प्राचीन है ।
श्री श्वेतांबर जैन तीर्थ दर्शन भाग-१
सायरा जैन देरासरजी
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देख्यो जिनजीनो देदार, मारो सफल थयो अवतार; ओक तुं ही छे आधार, मेरे यार यार यार. रत्रयीनो भंडार, तारा गुणोनी नहि पार गुणी गुणो जाणनार, आपो सार सार सार. काम क्रोधादि हणनार, साचो ते नर सरदार, तने जे पूजे अपार, पामे पार पार पार तारी वाणी मनोहार, टाळे दूरित अपार; रोग शोक टाळनार, सेवुं वार वार वार. तारा चरणोनो आधार, मने उतारे भवपार; नाम तारक धरनार, मोहे तार तार तार. बुद्धि आनंद अपार, आपो लब्धिअमृत प्यार; मांग सेवा अक सार, अरजी धार धार धार.
२. मजाबड़ी
मूलनायक श्री नवपल्लव पार्श्वनाथजी
यहाँ श्री नवपल्लव पार्श्वनाथजी आदि की १४ मूर्तियाँ है । सब यहाँ कम्पाउन्ड में रायण के वृक्ष के नीचे से निकली है। यह सब मूर्तियाँ संप्रति राजा और कुमारपाल और वस्तुपाल के समय की
है । जिर्णोद्धार का काम ७ साल तक चला सं. २०३७ में जिर्णोद्धार हुआ गमेरलाल सिंधी गोगुंदा में रहते है। अन्य लोग भी प्रभुजी को मानते हैं ।
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