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________________ ४६) श्री श्वेतांबर जैन तीर्थ दर्शन : भाग-१ मूलनायक श्री चिन्तामणि पार्श्वनाथजी ५०० वर्ष प्राचीन शिखरबंद देरासर सोनी महाजन ने निर्माण करवाया हैं। संवत १५२९ वै. सु. २ गुरुवार को इसकी प्रतिष्ठा हुई थी। सम्प्रति राजा के समय की २०० वर्ष जूनी प्रतिमाजी हैं। जीर्णोद्धार २०३९ वै. सु. १० ता. २१-५-८३ को करवाया गया हैं। प्राचीन घर देरासर के बाहर पू. आ. श्री विजय प्रतापसूरिजी की प्रतिमा है। यह उनका जन्म स्थान हैं । मांगरोल कालधर्म पाएथे। मांगरोल-वेरावल से यहाँ आ सकते हैं। मांगरोल से १८ कि.मी. हैं । चोरवाड़ की बस्ती २५००० हैं। दरिया किनारा से समीप होने से होली डे केम्प है। अतिथिगृह (गेस्टहाउस) है। जैनों की पहले बस्ती थी। वर्तमान में ४ घर हैं। ५. मांगरोल जाय पाना मूलनायक श्री नवपल्लवपार्श्वनाथजी मांगरोल जैन देरासरजी मूलनायक श्री नवपल्लव पार्श्वनाथजी यहाँ पर श्री नवपल्लंव-पार्श्वनाथजी मूलनायक की प्रतिमा लाल रंग की ५४ग ७ ईंच विराजमान है। जिसको सम्प्रति राजा ने भराइ हैं और कुमारपाल राजा के समय में यह देरासर वि.सं. १२५३ में निर्माण कराया गया है। ऐसा कहा जाता हैं कि इस प्रतिमाजी को लाने में उस समय टचली अंगुली खंडित हो गयी। प्रतिष्ठा के समय अपने आप अंगुली बराबर हो जाने से (नव फुट की) नव पल्लव इस प्रकार ख्याति मिली। इस कारण से नव पल्लव पार्श्वनाथ जी कही जाती है। तीन गर्भगृहों से युक्त शिखरबन्द देरासर है। देरासर के चोगान के बाहर दूसरे खंड में पंचतीर्थी दर्शन होते हैं जिसमें (१) शत्रुजय (२) सम्मेत शिखरजी (३) अष्टापद (४) गिरनार (५) आबू इन तीर्थों का सुंदर रंगीन आयोजन है। मोडेलो जैसी आकृति हैं। यहाँ भगवान के कल्याणक दिवसों का विधिवत पूजन होता हैं, घी की बोलियाँ लगती है। यहाँ पर गाँव में दूसरा सुपार्श्वनाथजी का शिखरबन्द देरासर भी है। यहाँ पर नव पल्लव पार्श्वनाथजी का देरासर समीप में है। दो उपाश्रय हैं। गाँव में एक उपाश्रय है। जैनों के ७५० घर थे। वर्तमान में ४५ घर हैं। जूनागढ़ से वेरावल हाईवे पर केशोद से दाई बाजू २५ कि.मी. दूर आया हुआ हैं।
SR No.002430
Book TitleShwetambar Jain Tirth Darshan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendrasuri
PublisherHarshpushpamrut Jain Granthmala
Publication Year1999
Total Pages548
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size114 MB
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