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________________ गुजरात विभाग : ९ - महेसाणा जिला (२१५ मूलनायक जी - श्री आदीश्वर दादा पेढ़ी - सेठ आनंदजी कल्याण जी, अहमदाबाद संप्रति महाराज के समय की भव्य प्रतिमा है। एक सन्यासी को स्वप्न आने पर जमीन में से निकाली है। प्रथम गांव में श्रावक ने यहाँ पर भगवान को रखा - उसके बाद धर्मशाला के कक्ष में रखा। मंदिर बन जाने पर वहाँ प्रतिष्ठित किया। ____ यहाँ पर प्राचीन मन्दिरों के खण्डहर है। पहले प्रख्यात तीर्थ होगा यहाँ से शेरीसा तक भोयरा था। १५६२ में श्री लावण्य गणी ने आलोचना विनति में इस तीर्थ का उल्लेख वर्णन किया है। इसके पश्चात् का कोई इतिहास नहीं मिलता है। १९७९ में यह प्रतिमाजी निकली - नवनिर्मित जिन मंदिर में पू. आ. श्री उदय सूरिजी महाराज की निश्रा में वि.सं. २००२ वैशाख सुदी १३ को प्रतिष्ठा हुई। छोटी धर्मशाला है। कलोल-मेहसाणा रोड पर गाँव हैं। कलोल १६ कि.मी. है और आदरेज से ५ कि.मी. है। बसें एवं कारें मिलती है। * ** ** ** ** ** ** ३२. शेरीशा तीर्थ मूलनायकजी - श्री पार्श्वनाथजी पेढ़ी - आनंदजी कल्याण जी अहमदाबाद प्राचीन तीर्थ था, जो कामक्रम से नाश को प्राप्त हुआ। सामने के भाग में खुदाई का काम करते हुए बहुत सी प्रतिमाये मिली है। १६ वीं सदी में मुस्लिम आक्रमणों के समय खंडित हो गयी, मंदिर भूमि पर वि. सं. १९५५ में पू. आ. श्री नेमीसूरिजी महाराज के उपदेश से यह मंदिर बना । वि. सं. १९८८ में इसका लेप हुआ है। २००२ में नूतन मंदिर में उनकी निश्रा में वै. सु. १० को प्रतिष्ठा हुई। ____ यहाँ पर रोहनपुर नगरी थी। १८ वीं सदी में पू. आ. देवेन्द्र सूरिजी महाराज द्वारा पार्श्वनाथ मंदिर की प्रतिष्ठा होने का उल्लेख है। वे लोग पार्श्वनाथ थे। वे खंडित परिकर में है। १३ सदी में वस्तुपाल तेजपाल एवं उनके भाई मालदेव तथा उनके पुत्र पुनसिंह ने कल्याण के लिए शेरीसा तीर्थ में नेमिनाथ की प्रतिमा स्थापित की थी। कवि लावण्य के समय वि. सं. १५६२ में शेरीशा स्तवन की रचना की है। इससे ज्ञात होता है कि यहाँ पर तीर्थ था। सोलहवी सदी में मुस्लिम आक्रमणों के कारण तीर्थ खंडित हो गया। १९५५ में खंडित जिनालयों की खुदाई करते समय कितनी ही प्रतिमायें मिली थी। शेरीशातीर्थ देरासर में भूमिगृह में विराजित श्री लोढ़ण पार्श्वनाथ भगवान की प्रतिमाजी दिव्य तेजवाली एवं चमत्कारिणी है, पद्मावती देवी की प्राचीन प्रतिमा वर्तमान में नरोडा में है। प्राचीन ग्रन्थों में इस तीर्थ की प्राचीनता का उल्लेख है। भोजनशाला, धर्मशाला, उपाश्रय है। कलोल से ७ कि.मी. है। रेल्वे स्टेशन ८ कि.मी. है। KV
SR No.002430
Book TitleShwetambar Jain Tirth Darshan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendrasuri
PublisherHarshpushpamrut Jain Granthmala
Publication Year1999
Total Pages548
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size114 MB
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