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गुजरात विभाग : २- जुनागढ जिला
पेढ़ी - सेठ देवचंद लक्ष्मीचंद (श्री आनंदजी कल्याणजी पेढ़ी) बाबु की धर्मशाला
इतिहास - प्राचीनकाल में उर्जयन्तगिरि, रैवतगिरि वर्तमान में गिरनार जी कहलाता हैं। जैन शास्त्रों में इस तीर्थ का अत्यधिक महत्त्व बतलाया गया हैं। श्री गिरनार तीर्थ को श्री शत्रुजय की पाँचवी ढूंक कही हैं। गिरनार पर्वत ऊपर ९४५ मीटर ऊंचाई पर मन्दिर हैं। ई. स. पूर्व छठी सदी में रेवानगर के राजा ने इस नेमिनाथ भगवान के मन्दिर का निर्माण करवाया। वैसी माहिती प्रभासपाटण से प्राप्त हुए ताम्रपत्र में से मिली हैं। उसके पीछे महाराज संप्रति |ने और वि. संवत ६०९ में काश्मीर के श्रेष्ठिओं के द्वारा उद्धार करवाने का उल्लेख हैं। बारहवीं सदी में वस्तुपाल तेजपाल, सिद्धराज के समय में मंत्री सज्जन और उसके पीछे कुमारपाल राजा ने जीर्णोद्धार करवाया हैं। | तेरहवीं सदी में मांडलिक राजा ने सुवर्ण के पतरो से दरवाजा मढ़वाया
उसके पश्चात बीसवीं सदी में नरसी केशवजी ने । विक्रम संवत १२२२ में | कुमारपाल के मंत्री आम्रदेव ने पहाड़ का रास्ता (सीढ़ियाँ) सुगम करवाया।
यह महान तीर्थ हैं। प्रथम तीर्थंकर से २४ तीर्थंकर भगवान के समय में अनेक चक्रवर्ती राजगण, श्रेष्ठिगण इस रैवताचल की यात्रा संघ लेकर जाने का उल्लेख हैं।
यहाँ पर अनेक तीर्थंकरों का पूर्वकाल में पदार्पण हुआ हैं। अनेक मुनिवर
तपश्चर्या करके मोक्ष सिधाये हैं। भावी (भविष्य में होने वाली चौवीसी यहाँ से मोक्ष प्राप्त होगा।
श्री नेमिनाथ भगवान की यह प्रतिमा विगत चौवीसी के तीर्थंकर श्री सागरजिन के उपदेश से पॉचवे देवलोक के इन्द्र ने स्थापित करायी थी। जो भगवान नेमिनाथ के काल तक इन्द्रलोक थी , बाद में श्री कृष्ण के गृह मंदिर में रही थी। जब द्वारिका नगरी का नाश हुआ। उस समय श्री अंबिकादेवी ने इस प्रतिमा को सुरक्षित रखी और पश्चात श्री रत्नाशाह की भक्ति से प्रसन्न होकर यह प्रतिमा श्री अंबिका देवी ने उनको प्रदान की जिसकी फिर से प्रतिष्टा करवाने में आयी।
श्री नेमीनाथ भगवान ने यहाँ पर दीक्षा ग्रहण की थी, केवल ज्ञान प्राप्त किया और मोक्ष प्राप्त किया। सती श्री राजुल ने भी तपश्चर्या की थी और
यहाँ से ही उनको मोक्ष प्राप्त हुआ। __यात्रीगण इस पतित पावन पवित्र भूमि के दर्शन करके धन्य बनते हैं।
दूसरे मन्दिर - गिरनार पर्वत की तलहटी में आने वाले जूनागढ़ शहर में दो मंदिर हैं। तलहटी ४ कि.मी. हैं वहाँ पर मंदिर, धर्मशाला, भोजनशाला हैं। तलहटी के मन्दिर के पास से ही पर्वत पर की चढ़ाई शुरू हो जाती हैं। लगभग ३ कि.मी. ४२०० सीढ़िया चढ़ने के बाद पतित पावन श्री नेमिनाथ भगवान की मुख्य ट्रॅक का दरवाजा आता हैं।
मूलनायक नेमिनाथ जिन मंदिर सामूहिक देरासरजी का दृश्य