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मूलनायक श्री नेमिनाथजी
१२. स्पपुर तीर्थ
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मूलनायक श्री नेमिनाथजी
एक ही आरस पत्थर की पद्मासन की प्राचीन प्रतिमा है। यह ग्राम १६०० वर्ष पूर्व बसा था। उस समय की यह प्रतिमाजी है। पूर्व में पास में मंदिर था। ७००-८०० वर्ष से यह मन्दिर बना है।
१३. पाटण
मूलनायक श्री पंचासरा पार्श्वनाथजी
पबासण के साथ की प्राचीन भव्य प्रतिमा की विक्रम संवत ८०२ में प्रतिष्ठा की गई है। अति भव्य शिखरबंधी देरासर में आरस की भमति में २४ तीर्थंकर है। ये प्रतिमा पंचासरा गाँव से लाई गई होने से इस प्रतिमा को पंचासरा पार्श्वनाथ के नाम से जाना जाता है । ये शहेर गुजरात की प्राचीन राजधानी थी । विक्रम संवत ८०२ में अणहिलपुर पाटण बसा । वनराज चावडा धर्मप्रेमी राजवी थे। प्रसिद्ध जैनाचार्य श्री शीलगुणसूरिजि ने वनराज की माताजी को आश्रय दिया था और इस लिए वनराज में धर्म संस्कार आये थे । ये प्राचीन तीर्थ जैसे पाटण की जाहोजाली सिद्धराज और कुमारपाल के समय में पराकाष्टा पर
श्री श्वेतांबर जैन तीर्थ दर्शन : भाग १
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रूपपुर जैन मन्दिर
पास में शंकरजी का मन्दिर है। उसके भोयरे में से यह प्रतिमाजी निकली है। भमति में २४ प्रतिमाजी हैं। देवी अंबाजी की प्राचीन प्रतिमा है। जो जमीन में से खुदाई करते समय मिली है। प्राचीन बावड़ी है। चाणस्मा जैन संघ व्यवस्था करता है।
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पहोंची थी । भव्य बाज़ार, महेल और मंदिर थे। संवत १३६० में पाटण का पतन हुआ । १३६८ में फिर से बसा । आज खंडहरे उस समृद्धि की याद देने के लिए खड़े है । अनेकबार उसका जिर्णोद्धार हुआ है । पाटण का इतिहास बहुत बड़ा है। ये राजनगरी धर्मनगरी थी। आज वो जाहोजलाली नही पर ८५ जैनमंदिर है । दो सहस्त्रकुट देरासरे है ।
उपरोक्त देरासर ८०२ में था जहाँ वो ही जगा पर फिर से बनाया गया है। उपाश्रयो धर्मशालाओ, भोजन- शालाओं की बहुत सी सुविधाए है। पौषधशाला हेमचंद्राचार्य ज्ञान मंदिर इत्यादि है।
रेल्वे बस गुजरात के प्रत्येक शहरो से मिलती है। यहाँ के पटोणे प्रख्यात है । "पडी पटोणे भात फाटे लेकीन फीटे नहीं" ये बहोत कुछ कह जाता है |