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गुजरात विभाग : १६ - भरूच जिला
करा कर मंदिर का नाम सर्वजीत प्रासाद रखा। एक समय बटुक शेठ की धर्मपत्नी हीराबाई उनकी पुत्रवधु वीराबाई के साथ यहाँ पर यात्रा के लिये आयी। नवीन मंदिर में दर्शन करते समय वीराबाई के दिमाग में बारसाख (दरवाजे का लकड़ा) लगा जिससे खिन्न होकर उसने कहा - "सासुजी आपने मंदिर तो बहुत ही बढ़िया बनाया है" परन्तु दरवाजा नीचा करने से मंदिर की शोभा में कमी रक्खी है। यह सुनकर सासुजी ने मीठी टकोरचुटकी मारी कि "तुम अपने पिताश्री के यहाँ से धन-द्रव्य मंगाकर दुसरा मंदिर बनाकर दरवाजा ऊँचा कराओं यह सुनकर पुत्रवधु ने पाँच वर्ष में देवविमान सदृश मनोहर बावन जिनालयों वाला मंदिर तैयार कराकर सं. १६५४ वें वर्ष में आ. श्री विजय सेन सूरिजी म. के वरद हस्त से श्री धर्मनाथ भगवान की अंजनशलाका करायी। प्रतिष्ठा कराकरमंदिर कानाम रत्नतिलक प्रासाद रक्खा। इससे सासु-बहु के मंदिर से कावी तीर्थ प्रख्यात है।
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मंदिर का अभी वर्तमान में जीर्णोद्धार वि. सं. २०३९ में दस लाख के खर्च से हुआ है। अखंड दीपक चालू है। २० लाख के खर्च से नवीन भोजनशाला बनी है। जैन भवन बना है। शेठ श्री जयंतिलाल अमीचंद घाटकोपर वाले बहुत ही भावुक सेवा-भावी एवं दानवीर है। जो इस तीर्थ की व्यवस्था सम्हालते है।
भोजनशाला, उपाश्रय, होल, धर्मशाला वि. की सुन्दर व्यवस्था है।
वडोदरा से जंबूसर-भरूच की बस मिलती है । भरूच से ट्रेन द्वारा भी आ सकते हैं। पास में वणछरा, पादरा, कुराल, केरवा मासर रोड, खंभात आदि है। खंभात और कावी का दरियाई रास्ता के बीच सिर्फ १० कि.मी. का अंतर है।
जैन बहु का मंदिर