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श्री श्वेतांबर जैन तीर्थ दर्शन : भाग-१
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सेठ श्री मोतीशाकीटोंक ५ वी टोंक - नन्दीश्वर टोंक
९वी ढूंक - मोतीशाह की टोंक सेठानी उजमबाई द्वारा विक्रम संवत १८९३ में निर्मित इस टोंक के केन्द्र सेठ मोतीशाह ने इसका निर्माण कराया है तथा उसकी प्रतिष्ठा उनके में (१)ऋषभानन (२) चन्द्रानन (३) वारिषेण (४) वर्धमान । ये चारशाश्वत | पुत्र श्री खेमचंद द्वारा विक्रम संवत १८९३ में हुई है। मूलनायक आदीश्वर जिनेश्वर देवों की प्रतिमायें चतुर्मुख विराजमान हैं।
दादा। यह टोंक विशाल भव्य मंदिरों से युक्त हैं। नन्दीश्वर द्वीप की रचना रूप मन्दिर हैं।
ऊपर अनुसार टोंकों के मुख्य मंदिरों के पश्चात दूसरे मंदिरों के समूह ६ठी टोंक - हेमवसही टोंक
पर्वत मालाओं की तरह क्रम बद्ध लगते हैं । पहाड़ के पीछे घेटीपागे हैं। जहाँ अहमदाबाद के हेमाभाई द्वारा विक्रम संवत १८८६ में निर्मित (मूल |
पर श्री आदीश्वर भगवान की प्राचीन चरण हैं । और दो नवीन निर्मित नायक अजितनाथ भगवान)
मंदिर हैं। ७ वी टोंक - प्रेमवसही टोंक
शत्रुजय शणगार टोंक तथा आदिनाथ जी के चरण हैं वहाँ जाने के लिए... (मोदी श्रीप्रेमचंद लवजीद्वारा विक्रम संवत १८४३ में निर्मित मूलनायक
मुख्य टोंक के पास से ही सीढियों का रास्ता हैं। श्री आदीश्वर भगवान)
पास में ही पवित्र शत्रुजय नदी हैं। यहाँ नीचे उतरते हुए अदबदजी दादा की अद्भुत प्रतिमा आती हैं । जसको "अद्भुत दादा" कहते हैं। यह दिव्यमूर्ति पद्मासनस्थ ५'५ मीटर
विशेष : इस गिरिराज की तीन प्रदक्षिणायें मानने में आती हैं । (१)डेढ़, की हैं।
कोस की (२) ६ कोस की (३) बारह कोस की ८ वी टूक - बाला वसही टूक
नवाणुं यात्रा करने वाले एवं दूसरे भाग्यशाली शत्रुजय नदी में स्नान करके श्री बालाभाई द्वारा वि.सं. १८९३ में मूलनायक आदीश्वर गिरिराज की प्रदक्षिणा करके अपने पापों का क्षय करते हैं । मुख्य मंदिर के भगवान
पीछे एक प्राचीन रायण का वृक्ष हैं। श्री आदीश्वर भगवान ने यही पर देशना
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