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________________ गुजरात विभाग : १५ - वडोदरा जिला प्रगट प्रभावी पार्श्वनाथजी श्रीमाली वागा श्री लोढण पार्श्वनाथजी मूलनायकजी - श्री आदीश्वरजी ऋषभदेव तथा धर्मनाथ भगवान के मंदिर जीर्ण होने पर नींव से जीर्णोद्धार शेठ देवचंद धर्मचंद की पेढ़ी श्रीमाला वागा श्री डभोई पू. आ. श्री जम्बुसूरिजी म. सा. की निश्रा में सं. २००४ माघसुदी ६ के दिन यह जिनालय प्राचीन है। ऊपर के भाग में ऋषभदेव प्रभु । दर्भावती करने में आया। पू. आ. श्री विजय जम्बु सूरिजी म.सा. डभोई के वतनी थे। पार्श्वनाथ । १५०० वर्ष पूर्व की शिल्पकला है। नदी किनारे से धोबी को १७ वीं सदी के महान पुरूष पू. उ. श्री यशोविजयजी म. डभोई में स्वर्गवासी स्वप्न आया - इससे प्रतिमाजी मिली । सप्तफणों से विराजित लेप युक्त प्रभुजी । हुए थे। उनके चरण-उनके अग्निसंस्कार के स्थान पर बनाये है। के दायें पद में सं. १८४५ । धर्मनाथ के बायें पैर में सं. १६७० का लेख है। यहाँ पर दूसरा (लोढण पार्श्वनाथ) शामला पार्श्वनाथ का अलग मंदिर केशरियाजी आदिनाथ भगवान विराजित किये है। भव्य महोत्सव प्रतिष्ठा है। यह प्रतिमाजी छाण-मिट्टी की अत्यन्त प्राचीन है। आखिरी जीर्णोद्धार विधि सं. २००५ में हुई है। साथ में मुनिसुव्रत स्वामी एवं चन्द्रप्रभु तीन वि. सं. १९९० में हुआ है। सागरदत्त नाम के श्रेष्ठी ने इस प्रतिमाजी को छाण जिनालयों का विनिमय हुआ। गुरु ज्ञान मंदिर बनवाया। मिट्टी से बनवाई, वि. सं. १९७१ में कुआ में से बाहर निकाली वहाँ अभी सामने चन्द्र विहार में सं. १८३९ को मूलनायक चन्द्रप्रभु वै. सुदी ६ को । ____ मंदिर मौजूद है। सं. २००७ में प्रतिष्ठित हुए। इस प्राचीन नगरी का किला १३वीं सदी का एक सौ घर है। मंदिर, उपाश्रय, धर्मशालायें है। है। महामंत्री वस्तुपाल लघु बन्धु तेजपाल सेनापति ने १७० देव कुलकिओं डभोई-छोटा उदयपुर जाते समय मध्य में आता है । वड़ोदरा से ३० सहित का भव्य जिनालय बनवाया है। कि.मी. दूर है। ____ बाहर के भाग में विजय दानसूरिजी म. का गुरु मंदिर है। अन्य मंदिरों में ऋषभदेव म., धर्मनाथ म., मुनिसुव्रत स्वामी वगैरह प्राचीन काष्ट के ***** मंदिर थे। * * * * * * * * * *
SR No.002430
Book TitleShwetambar Jain Tirth Darshan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendrasuri
PublisherHarshpushpamrut Jain Granthmala
Publication Year1999
Total Pages548
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size114 MB
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