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________________ गुजरात विभाग : १३ - खेडा जिला (२५९ मूलनायक श्री भीड़भंजन पार्श्वनाथजी वि. सं. १७ वी. सदी में पू. उपाध्याय उदयरत्न जी महा. हो गये है, वे खेड़ा के थे और उनका मियां गाम में कालधर्म हुआ था। श्री जंबू स्वामी रास खेड़ा का प्राचीन नाम खेटकपुर था। एक ही कम्पाउन्ड में अमीझरा की रचना यहां पर ही हुई थी। यहाँ पर वि. सं. १७४९ में भीड़भंजन पार्श्वनाथ, वासुपूज्य स्वामी, महावीर स्वामी वगैरह मंदिर हैं। पार्श्वनाथ मंदिर था। जिसका जीर्णोद्धार वि. सं. १९२५ में उपाश्रय, वात्रक नदी के तट पर हरियाला नामक गांव में पू. साधु म. बैठे थे उस धर्मशाला आदि सहित करवाने का लेख था। खेड़ा के पास से देवकी समय उनको आभास हुआ - कि मानो प्रभु यह कह रहे हैं कि अखंड | वणसोल नामक गाँव में से वि. सं. १७२४ का एक लेख मिला है। इस तीर्थ दीपक के साथ भूमि में दबी प्रतिमा है, उनको बाहर निकालो। पू. साधु का अंतिम जीर्णोद्धार हुये वि. सं. २०२८ मगशिर सुदी ३ को पू. आचार्य श्री महा. ने अपने को आभास हुई घटना की बात खेड़ा जैन संघ को कही गाजे | विजय रामचन्द्र सूरिजी म. की निश्रा में मंदिर की प्रत्येक प्रतिमाजी की फिर के साथ अखंड दीपक के साथ प्रतिमाजी को लाये । वे ही प्रतिमा आज से प्रतिष्ठा हुई है। पू. हर्ष विजय दादा की स्वर्गभूमि है। वर्तमान में विराजमान है और ५०० वर्ष पूर्व मंदिर बनवाया है - अनेक बार | वात्रक नदी के किनारे देरी थी - रास्ता बंद होने से पादुका नूतन प्रतिष्ठा जीर्णोद्धार हुआ है। यहां कुल ९ मंदिर थे उनमें से ३ मंदिर जीर्ण हो गये उनके के समय मंदिर के कम्पाउन्ड में प्रतिष्ठित है। तपो मूर्ति पू. आ. श्री विजय प्रतिमाजी इस मंदिर में विराजमान है। अखंड दीपक आज भी चालू है। कर्पूर सूरि म. की यह निवास-भूमि थी। यहाँ मंदिर की पेढ़ी में अमूल्य नीलम स्फटिक की प्राचीन प्रतिमाजी है। घर - १५०, विशाल धर्मशाला, भोजनशाला, उपाश्रय, पांजरापोल, जिनकी हर रोज सेवा-पूजा भी होती है। पाठशाला आदि संस्थाये है। पटेल भावसार वि. भी जैन था। २. मातर तीर्थ मातरतीर्थजैन मंदिर TUA
SR No.002430
Book TitleShwetambar Jain Tirth Darshan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendrasuri
PublisherHarshpushpamrut Jain Granthmala
Publication Year1999
Total Pages548
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size114 MB
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