SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 352
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ गुजरात विभाग : १६ - भरूच जिला (२९९ ५. आमोद आमोद श्वे. मू. पंच का मंदिर मंदिर नं. ३ - मूलनायक श्री मुनिसुव्रत स्वामी का शिखर बंद मंदिर है। १९२६ में निर्मित वर्षगाठ पोष वदी - ५ (सरियापोल) प्रदिक्षणा में चौमुख जी है। प्रतिमाओं को सुरक्षित रखने के लिए भोयरे की व्यवस्था है। गाँव के मूलनायक श्री अजितनाथजी मुख्य बाजार में यह प्रथम मंदिर आता है। मंदिर के समीप जैनों के घर है। भरूच - जंबूसर मार्ग उपर भरूच जिले के जैन तीर्थ कावी-गंधार केखाडा दहेज झघडिया एवं भरूच जाने के लिये आमोद जंक्शन है। इसके उपरान्त वडोदरा जला के पादरा तहसील का वणछरा तीर्थ को जाने के लिए (१) श्री अजितनाथ (२) श्री अजितनाथ (३) श्री मुनिसुव्रत स्वामी इस आमोद से ही सीधा रास्ता है। इसके उपरान्त करजण समीप का अणस्तु प्रकार कुल तीन मंदिर है। तीर्थ तथा मियागाम की प्रसिद्ध पांजरा पोल जाने के लिए भी आमोद से ही (१) श्री जैन श्वेताम्बर मंदिर (पंचों का) (मुख्य) (२) श्री आमोद जैन जा सकते है। प्राचीन तीर्थ गंधार जाने के लिये सबसे सीधा रास्ता यहाँ से ही श्वेताम्बर मूर्ति पूजत वांटा मंदिर (३) श्री मुनिसुव्रत स्वामी जैन श्वे. मंदिर दिर | पडता है। पूर्व में लाड श्रीमाली जैनों की छत्रीसी में आमोद की गणना होती मंदिर नं. १ मूलनायक श्री अजितनाथ भगवान - भोयरे में - श्री थी। सौराष्ट तथा अहमदाबाद तरफ से विहार करते पू. साधु-साध्वी भगवन्त भीडभंजन श्री पार्श्वनाथ की प्रभावपूर्ण एवं चमत्कारी भव्य प्रतिमा ऊपर के गंभीरा बोरसद के सीधे मार्ग से आमोद आकर गंधार-भरूच झघडिया होकर मेडे पर श्री आदिनाथ भगवान (वर्षगाठ माघ सुदी १०) बम्बई जा सकते है। यहाँ के धार्मिक संस्कारों के सिंचन का कारण बारमास मंदिर नं. २ -४०० वर्ष प्राचीन मूलनायक श्री अजितनाथजी का नीचे श्रावक-श्राविकायें आवश्यक क्रियायें करती है। और आमोद में से ११ भाई श्री शान्तिनाथ भगवान की संप्रति राजा के समय की प्राचीन प्रतिमा है। पास बहिनों की दीक्षायें भी हुई है। श्री रत्नाकर विजयजी ज्ञान भंडार ५० वर्ष में दो उपाश्रय है। तीन मंजिल वाला यह मंदिर है। प्राचीन है। जिसमें प्राचीन ग्रंथ तथा हसतलिखित प्रतियाँ है। मूलनायक श्री अजितनाथ भगवान के भव रंगमंडप में उत्कीर्ण किये है। साल गिरी- मार्ग शीर्ष सुदी - ११ मंदिर के समग्र विस्तार में पहले जैनों के करीबन ४० घर है। भव्य प्राचीन पद्धति से बनाया गया जैन उपाश्रय है। सम्पूर्ण गर्भगृह कांच का बनाया गया है। मंदिर की जमीन ठाकुर साहब ने प्रदान की थी उसके कार्यवाहक बाहर गाँव के जैन थे। उन्होंने संघ की सहायता से मंदिर बनवाये। SA
SR No.002430
Book TitleShwetambar Jain Tirth Darshan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendrasuri
PublisherHarshpushpamrut Jain Granthmala
Publication Year1999
Total Pages548
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size114 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy