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पहले गोरजी का उपाश्रय था। उनके पास प्राचीन हस्तलिखित ज्योतिष आदि की प्रतें थी। उसमें से कुछ हस्तलिखित प्रतें प्राप्त हुई जो यहां के रत्नाकर विजयजी ज्ञान भंडार में है। प्राचीन पुस्तकें तथा प्रतें भी है। ७० घर है। ३०० जैनों की संख्या है। भरूच से ३५ कि.मी. जंबुसर, वडोदरा स्टेट हाईवे नं. ६ तथा नेशनल हाईवे नं. ८ पर से करजण आमोद कोस्टल हाईवे।
आमोद का मूल नाम सुगंधपुर था। ठाकुर का गाँव गिना जाता था। काशी में पढ़े हुए विद्वान ब्राह्मण थे । और जैनों का एक मंदिर भी था। बस्ती भी जैनों की बहुत सारी थी।
श्री श्वेतांबर जैन तीर्थ दर्शन : भाग-१ -
- -- देशी (मुझे महावीर बिना नहि चैन पडे....) मुझे वीतराग बिना नाहि चैन पडे,
नाहि चैन पडे, नाहि चैन पडे - मुझे. जित शत्रु नंदन जग सोहे
_सवि काज सरे मुझ तुझ वडे- मुझे. विजया सुत विण अवरने सेवे
ते भविप्राणी भव में रखडे- मुझे. अपूर्व वीर्योल्लासे करीने,
जीत्या तुमे कर्मतणा झगडेदेव अनेरा में जग में जोया
तुझ सम नाहि काई जगमें बड़े - मुझे. कर्पूर सम निर्मल तुझ गुणने
गावे अमृत भक्ति वडे।
६. अलीपोर
मूलनायक जी - श्री गोडी पार्श्वनाथजी अलीपोर तीर्थ (दक्षिण गुजरात) बीलीमोरा से १५ कि.मी. की दूरी पर और बम्बई-अहमदाबाद हाईवे रोड उपर आता है। जहाँ पर श्री गोडी पार्श्वनाथ भगवान सं. ११४४ में प्रतिष्ठित हुए। स्थायी भाता प्रदान करने की व्यवस्था है। जीर्णोद्धार हुआ है। भोजनशाला है।
श्री जयकुमार दुर्लभ भाई शाह अगियारी स्ट्रीट, बीलीमोरा - ३९३६२१
हुँ छु अनाथ, मारो झालजो रे हाथ, विनवू छु प्रभु पारसनाथ ! हुंछु प्रवासी
नथी कोईनो संगाथ, विनवु. सगा सम्बन्धी स्नेही ओ सहुं, तोये निराधार, एकलवायो छु अवनिमां, तारो छे आधार
जावूछे दूर-दूर देजोरे साथ, विनवू. भडभडती आगथी नागने उगार्यो, नयनो थी वरसावी नेह, संसार तापे हुये बलुंछ उगारो लावीने स्नेह,
दीन बंधु छो दीनोना नाथ, विनवू. मुक्तिनगर मां जावं छे, वचमाँ छे सागर मोटो, आगल जऊं त्या पाछो पहुं छु, मारग मलियों खोटो.
तारजो रे ओ त्रिभुवनना नाथ, विनवू.
प्रेम धर्मना जगाव, तारा शुद्ध चित्तो मा, प्रभु पार्श्वजी
वसाव तारा शुद्ध चित्तो मां ॥१॥ थंमण पार्श्व जिनजी प्यारा, छो राग द्वेष थी न्यारा,
तारां कर्मने हटाव, जई शिव महेलो मां. ॥२॥ तुं चार गतिमा रूल्यो, जो धर्म भावना भूल्यो,
सुन्दर भावना जगाव, तारा शुद्ध चित्तो मां. ॥३॥ जीव पुण्य उदये अही आव्यो वली मिथ्या भाव वमाव्यो,
जिनराज धर्म सुहायो, तारा शुद्ध चित्तो मां. ॥ ४॥ रहो नित्य नाम जिन रटता, हटशे हृदयनी जडता,
सुख जामशे अनुपम, तारा शुद्ध चित्तो मां ॥५॥ निज चित्त ठाम जो आवे, लब्धि आत्म कमल मां जागे
गुण गणो अति अभराशे, तारा शुद्ध चित्तो मा. ॥६॥
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