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________________ गुजरात विभाग : १६ - भरूच जिला मूलनायक श्री श्रेयांसनाथजी SAMOA SEO ७. कुल तीर्थ मूलनायक जी श्री श्रेयांसनाथजी भरूच जिले में आमोद के पास कुराल तीर्थ आता है। मूलनायक श्री श्रेयांसनाथ प्रभु की भव्य प्रतिमा है। प. पू. आ. देव श्री रामचन्द्र सूरीश्वरजी महाराज ने संसारी अवस्था में इस तीर्थ में रहकर १२ मास तक जिन पूजा भक्ति की थी। उनके एवं प. पू. आ. देव श्री प्रभाकर सूरीश्वरजी महाराज के सदुपदेश से इस तीर्थ का जीणोद्धार हुआ है। मंदिर अत्यन्त रमणीय है छोटी धर्मशाला बनवानी है। दो सौ वर्ष का प्राचीन मंदिर है। जीर्णोद्धार होने के पश्चात पुनः प्रतिष्ठा प. पू. आ. श्री विजय विक्रम सूरीश्वरजी म. तथा पू. आ. श्री प्रभाकर सूरीश्वरजी की निश्रा में हुई थी। इस तीर्थ की व्यवस्था दिनेश भाई शाह नगीन दास चूडगर महात्मा गांधी रोड जैन मंदिर के पास वडोदरा पास में है। , तुमे बहु मैत्री रे साहिबा, मारे तो मन एक तुम बिना बीजो नवि गमे, ओ मुझ म्होटी रे टेक. श्री श्रेयांस कृपा करो। मनराखो तुमे सवि तणां पण कीहां एक मली जाओ, ललचाओ लख लोक ने साथी सहज न थाओ, श्री. ॥ २ ॥ राग भरे जन मत रहो, पण तिहुँ-काल विराग, चित्त तमारा रे समुद्र नो, कोई न पामे रे ताग श्री. ॥ ३ ॥ एवा शुं चित्त मेलव्युं, केलव्युं पहेलां न कांई सेवक निपट अबूज छे, निवशो तुमे सांई श्री. ॥४॥ निरागी शुं किम मिले, पण मिलवानो एकांत, वाचक यश कहे मुझ मिल्यो भक्ते कामण कन्त, श्री. ॥५ ॥ मूलनायक श्री महावीर स्वामी यहाँ की प्रतिमाजी बहुत प्राचीन है। बहुत सारी प्रतिमायें जमीन में से निकली है । वि. सं. १६६४ में पू. आ. श्री हीर सूरिजी महा. सा. ने प्रतिष्ठा की है। आज भी बहुत सी प्रतिमायें जमीन में से दबी हुई पड़ी है। कहा जाता है कि अभी ही पार्श्वनाथ प्रभु की प्रतिमा निकली है। मूलनायकजी ८. दहेज तीर्थ Shres को मूल स्थान पर रखकर जीर्णोद्धार कराकर वि. सं. २०२५ में पुनः प्रतिष्ठा पू. आ. श्री धर्मसूरिजी म. सा. के द्वारा हुई है। धर्मशाला, उपाश्रय है। भरूच से ४५ कि.मी. दूर है। बसें मिलती हैं। कहा जाता है कि घोषा गांव में यदि कुत्ता भसे तो दहेज सुनाई देता है। यानी समुद्र मार्ग से दहेज घोघा से समीप होता है। (३०१
SR No.002430
Book TitleShwetambar Jain Tirth Darshan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendrasuri
PublisherHarshpushpamrut Jain Granthmala
Publication Year1999
Total Pages548
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size114 MB
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