________________
३०२)
श्री श्वेतांबर जैन तीर्थ दर्शन : भाग-१
दहेज तीर्थ जैन मंदिर
मूलनायक श्री आदीश्वर
९. समली विहार - अश्वावबोध तीर्थ - भस्च ।
श्री मुनिसुव्रत स्वामी (श्रीमाली पोण भरूच)
वही मंदिर आज जुमा मस्जिद के स्वरूप में नर्मदा नदी किनारे खड़ा है। (१) भारत की प्राचीन नगरी, गुजरात का भव्य बंदरगाह था। अत्यन्त
ऐसा कहा जाता है। इसमें आबू देलवाडा की नक्काशी देखने को मिलती प्राचीन मंदिर विद्यमान है। जैन शास्त्रों के अनुसार श्री मुनिसुव्रत स्वामी ने
है। अनेक साधु महात्मा जैनाचार्य यहाँ प्रायश्चित्त लेने पधारते। ऐसा कहा अश्व को प्रतिबोधित किया था। वह देव बना और अपने अगले जन्म के
जाता है। प्रायः ५०० वर्ष पूर्व खिलजी के समय में हमले हुए वही उन्होंने उपकारी मुनिसुव्रत स्वामी का मंदिर बनाया था। इससे अश्वाबोध तीर्थ प्रतिमाओं को श्रीमाली पोल में लाकर मंदिर बनाया। पहले प्रतिमाओं को स्थापित हुआ।
अपने मकान में रखे । यहाँ पर गहरे कोठार में सात मंदिर थे उनको इकट्ठा (२) समली - विहार : सिंहल (लंका) के राजा की कुमारी सुदर्शना
करके तीर्थोद्धार का कार्य पू. आ. श्री विक्रमसूरिजी म. के उपदेश से हुआ अगले भव में समली (पक्षी) थी। शिकारी के बाण से घायल की गयी साधु-, है। श्रीमाली पोल के इस मंदिर में नीचे के भाग में भक्तामर मंदिर सुन्दर बना भगवन्तों से "नमो अरिहंताणं" सुनते वह समाधि से मृत्यु को प्राप्त हुई और है। मूलनायक आदीश्वर भगवान के रंग मंडप में आजु-बाजु पू. लब्धि सिंहल द्वीप की राजकुमारी बनी। जैन सेठ छींक आने पर “नमो सूरिजी म. तथा भक्तामक स्तोत्र के रचयिता श्री मानतुंग सूरिजी की बन्दी अरिहंताणं बोला- उसको सुनकर जाति स्मरण हआ- उसने लंका से अवस्था की खडी प्रतिमाजी वगैरह है। भरूच आकर समली विहार मंदिर बनाकर मुनिसुव्रत स्वामी की प्रतिष्ठा
धर्मशाला, भोजनशाला है। अहमदाबाद-बम्बई रेल्वे तथा हाईवे मार्ग करायी। इस तीर्थ के कई जीर्णोद्धार हुए है। अन्तिम उदायन मंत्री के पुत्र
पर जंक्शन है। गंधार ४५ कि.मी., कावी ७५ कि.मी., जगडिया २० बाहड मंत्री ने कलिकाल सर्वज्ञ श्री हेमचन्द्राचार्य जी के पास प्रतिष्ठा
कि.मी. है। करायी।