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________________ ३४४) श्री श्वेतांबर जैन तीर्थ दर्शन : भाग-१ R FLARSHA मूलनायक श्री मुनिसुव्रत स्वामी वि. सं. १२१४ में यह देरासर की प्रतिष्ठा हुई थी । मूलनायक श्री पार्श्वनाथ थे । इसके पहले श्री संभवनाथजी प्राचीन थे । हाल में वे प्रथम मंझील पर है । हालके मूलनायक श्री मुनिसुव्रत स्वामी की वि. सं. २०३५ में प्रतिष्ठा संपन्न हुई है। जैनों के २० घर हैं । जैन धर्मशाला और उपाश्रय भी है। आरस के पथ्थर यहाँ से बहार जाते है। देवोऽनेकभवार्जितोर्जितमहा - पापप्रदीपानलो, देवःसिद्धवधूविशालह्रदया - लंकारहारोपमः; देवोऽष्टादशदोषसिन्धुरघटा - निर्भेदपंचाननो, भव्यानां विदधातु वांछितफलं श्रीवीतरागो जिन; ख्यातोऽष्टापदपर्वतो गजपदः सम्मेतशैलाभिधः; न १३. पेसवा तीर्थ MROMA पेसवा तीर्थ जैन देरासरजी A IRDOSHARETIREMEसस मूलनायक श्री कुंथुनाथजी मूलनायक श्री कुंथुनाथजी यहाँ मूलनायक श्री कुंथुनाथंजी स्वामी का देरासर है। उसकी प्रतिष्ठा संवत २०१९ में हुई है। उसके पहले यही कुंथुनाथजी ४०० साल से है । कुंथुनाथजी की प्रतिमा बहुत प्राचीन है । धर्मशाला और आयंबीलशाला भी है । जैन परिवार के करीब १०० घर है। मूलनायक श्री शंखेश्वर पार्श्वनाथजी : शिवगढ से यह श्री शंखेश्वर पार्श्वनाथ की प्रतिमा लाई गई है इसलिये उसे श्री शंखेश्वर पार्श्वनाथ कहा जाता है । यह श्री पार्श्वनाथजी की प्रतिष्ठा सं. २०३८ ज्येष्ठ सुद २ के दिन संपन्न हुई है। प्रतिमाजी प्राचीन है । पूर्व सन्मुख में दो मंदिर है । यह श्री शंखेश्वर पार्श्वनाथजी की मूल प्रतिष्ठा सं. १६२० में संपन्न हुई थी । ईसके पहले लाजमें शिखरबंध देरासर में यह प्रतिमा मूलनायक के रूप में थी । वहाँ कोई जैन न होने से यहाँ लाकर प्रतिष्ठा की। यहाँ के प्राचीन प्रतिमा मूलनायक कुंथुनाथजी जैसी ही प्रतिमा उंझा (उ. गुजरात) में है।
SR No.002430
Book TitleShwetambar Jain Tirth Darshan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendrasuri
PublisherHarshpushpamrut Jain Granthmala
Publication Year1999
Total Pages548
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size114 MB
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