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श्री श्वेतांबर जैन तीर्थ दर्शन : भाग-१
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मूलनायक श्री मुनिसुव्रत स्वामी
वि. सं. १२१४ में यह देरासर की प्रतिष्ठा हुई थी । मूलनायक श्री पार्श्वनाथ थे । इसके पहले श्री संभवनाथजी प्राचीन थे । हाल में वे प्रथम मंझील पर है । हालके मूलनायक श्री मुनिसुव्रत स्वामी की वि. सं. २०३५ में प्रतिष्ठा संपन्न हुई है। जैनों के २० घर हैं । जैन धर्मशाला और उपाश्रय भी है। आरस के पथ्थर यहाँ से बहार जाते है।
देवोऽनेकभवार्जितोर्जितमहा - पापप्रदीपानलो, देवःसिद्धवधूविशालह्रदया - लंकारहारोपमः; देवोऽष्टादशदोषसिन्धुरघटा - निर्भेदपंचाननो, भव्यानां विदधातु वांछितफलं श्रीवीतरागो जिन; ख्यातोऽष्टापदपर्वतो गजपदः सम्मेतशैलाभिधः;
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१३. पेसवा तीर्थ
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पेसवा तीर्थ जैन देरासरजी
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मूलनायक श्री कुंथुनाथजी
मूलनायक श्री कुंथुनाथजी यहाँ मूलनायक श्री कुंथुनाथंजी स्वामी का देरासर है। उसकी प्रतिष्ठा संवत २०१९ में हुई है। उसके पहले यही कुंथुनाथजी ४०० साल से है । कुंथुनाथजी की प्रतिमा बहुत प्राचीन है । धर्मशाला और आयंबीलशाला भी है । जैन परिवार के करीब १०० घर है।
मूलनायक श्री शंखेश्वर पार्श्वनाथजी : शिवगढ से यह श्री शंखेश्वर पार्श्वनाथ की प्रतिमा लाई गई है इसलिये उसे श्री शंखेश्वर पार्श्वनाथ कहा जाता है । यह श्री पार्श्वनाथजी की प्रतिष्ठा सं. २०३८ ज्येष्ठ सुद २ के दिन संपन्न हुई है। प्रतिमाजी प्राचीन है । पूर्व सन्मुख में दो मंदिर है । यह श्री शंखेश्वर पार्श्वनाथजी की मूल प्रतिष्ठा सं. १६२० में संपन्न हुई थी । ईसके पहले लाजमें शिखरबंध देरासर में यह प्रतिमा मूलनायक के रूप में थी । वहाँ कोई जैन न होने से यहाँ लाकर प्रतिष्ठा की।
यहाँ के प्राचीन प्रतिमा मूलनायक कुंथुनाथजी जैसी ही प्रतिमा उंझा (उ. गुजरात) में है।