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________________ गुजरात विभाग : १३ -खेड़ा जिला (२६७ KPQ माणेक चौक भोयरा में मूलनायक श्री आदीश्वरजी जीराड पालो भोयरा में मूलनायक श्री नेमनाथजी मूलनायकजी - श्री स्थंभन पार्श्वनाथजी यह मंदिर खारवाडा में है। श्री चिन्तामणि पार्श्वनाथजी के तीन मंदिर एवं उसी पोल-पोल में मंदिर मिलकर ६९ मंदिर है। माणेक चौक भोयरा पाला, खारवाड़ा, चोकसीपोल, बाजार, बोर पीपलो, मांडवी पोल वि. में बहुत मंदिर है। खंभात की वैभव समृद्धि वर्षो से प्रख्यात थी। वि. सं. ११११ में श्री अभयदेव सूरि म. को दैवी प्रेरणा मिली और भूगर्भ में यह भव्य स्थंभन पार्श्वनाथजी की प्रतिमा प्रगट हुई है। प्रतिमाजी की कला तथा कारीगरी ध्यान से अभ्यास करने योग्य है। इस खंभात गाँव में आज भी अति प्राचीन अवशेष मिल आते है। यहाँ पर श्री कलिकाल सर्वज्ञ हेमचन्द्राचार्य म. सा. ने दीक्षा ग्रहण की थी। यह तीर्थ प्राचीन एवं भव्य है। खंभात प्राचीन बन्दर एवं व्यापार का केन्द्र था। जीराडा पाला चिन्तामणि मंदिर में नीचे नेमिनाथ जी है - वे गिरनार जाते समय यहाँ स्थिर हुए ऐसा कहा जाता है। बाजार चिन्तामणि भोयरा में स्थभन्न पार्श्वनाथ, माणेक चोक भोयरा में आदीश्वरजी, वाघमासी खडकी भोयरा में शान्तिनाथजी की विशाल प्रतिमायें दर्शनीय है। माणेक चोक में संप्रति राजा के समय की ५२ प्रतिमा निकली है और वहाँ पर प्रतिष्ठित संघवी की पोल में भी ३० प्रतिमाजी हजार वर्ष प्राचीन निकली हैं। दहेवाण नगर में भव्य श्री महावीर स्वामी जिनालय गोलाकार है - उसमें २४ जिन एक सरीखे एक लाईन में है। नीचे सीमन्धर स्वामी है। उनकी बाजु में २० विहरमान तथा दायीं तरफ अतीत की चौवीशी, बायी बाजु भविष्यत् काल की चौबीसी है। इस मंदिर की प्रतिष्ठा अंजन शलाका पू. रामचन्द्र सू. म.की निश्रा में हुई है। बजार चिन्तामणि मंदिर के पास पू. नीति वि. दादा, पू. आत्मारामजी महा., पू. कमल सू. म., पू. लब्धि सू. म., पू. दानसूरि म., पू. प्रेम सू. म. की मूर्तियाँ एवं गुरु मंदिर है। पू. प्रेम सू. म. की स्वर्गभूमि है। पू. रामचन्द्र सू. म. के गुरु मंदिर की प्रतिष्ठा भी हुई है। खारवाडा में पू. वृद्धिचन्द्रजी म., पू. नेमि सू. म. के गुरु मंदिर है। जैनमें के घर १००० है। उपाश्रय, धर्मशाला, भोजनशाला है। श्री अंबालाल पानाचंद यात्रिक गृह माणेक चोक में बना है। यात्रिकों के लिए पूर्ण सुविधा है। समीप में २ कि.मी. शंकरपुर तीर्थ में भव्य चिन्तामणि पार्श्वनाथ तथा गुरु मंदिर में पू. गौतम स्वामीजी तथा पूर्व के अनेक महापुरुषों की मूर्तियाँ है। धर्मशाला वि. है। उसी प्रकार खंभात से रालज तीर्थ ६ कि.मी. है। जहाँ पर भव्य मंदिर, उपाश्रय, धर्मशाला है। ये दोनों ही यात्रा के धाम है। AN रासर
SR No.002430
Book TitleShwetambar Jain Tirth Darshan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendrasuri
PublisherHarshpushpamrut Jain Granthmala
Publication Year1999
Total Pages548
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size114 MB
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