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________________ ३९८) सा मूलनायक श्री शांतिनाथजी २४. सांडेराव मूलनायक श्री शांतिनाथजी हाल में मूलनायक श्री शांतिनाथजी है। पहले मूलनायक आदी पार्श्वनाथ महावीर स्वामी जो बाँये ओर हैं। मूलनायक श्री शांतिनाथजी महाराजा कुमारपाल के समय के है । रंगमंडप में ६ बड़ी प्रतिमाजी संप्रति राजा के समय की है। बावन जिनालय हो रहा है। मंदिर सपाटी के नीचे है। वर्षाऋतु के समय में यहाँ पानी भरता है । अंक छोटे स्थान में पानी समा जाता है । देरासर महाराजा संप्रति के समय का है पूराने पार्श्वनाथजी और महावीर स्वामी रंगमंडप में है। सं. ९६९ में यशोभद्र सू. म. के हस्तों से श्री श्वेतांबर जैन तीर्थ दर्शन : भाग-१ सांडेराव जैन देरासरजी प्रतिष्ठा संपन्न हुई थी। बादमें मूलनायक श्री शांतिनाथजी की प्रतिष्ठा २०० / ३०० साल पहले प्रतिष्ठित किये गये थे । उसी स्थान पर पहले नागदेव प्राचीन थे सं. २०३८ में इनकी प्रतिष्ठा संपन्न की थी। नागदेव खंडित होने के कारण दूसरे बिठाये गये हैं। दो शिखरबंध देरासरजी है। एक घर देरासर भी है। दूसरे शिखरबंध देरासर में मूलनायक श्री आदीश्वर केशरीयाजी की। प्रतिष्ठा सं. १९८७ में हुई थी। घर देरासर में पार्श्वनाथजी है । शांतिनाथजी देरासर में सं. १०११ का लेख था परंतु हाल में नहीं है । एक आ. श्री की प्रतिमा के नीचे ११९७ का लेख है । वल्लभीपुर के अंत बाद वहाँ से बहुत सी चीजे आई थी। वैसा उल्लेख है। जैनों के ६०० में से आज सीर्फ़ १००/१२५ घर है। धर्मशाला है । झालोर आहोर के रास्ते पर फालना से ११ कि.मी. के अंतर पर है।
SR No.002430
Book TitleShwetambar Jain Tirth Darshan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendrasuri
PublisherHarshpushpamrut Jain Granthmala
Publication Year1999
Total Pages548
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size114 MB
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