SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 350
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (२९७ * गुजरात विभाग : १६ - भरूच जिला 6666666666666 ** * * ** * अहो! अहो! पासजी! मुझ मलियारे, मारा मनना मनोरथ फलिया- अहो. तारी मूरति मोहन गारी रे, सहु संघने लागे प्यारी रे, तमने मोही रह्या सुर नरनारी- अहो.१ अलबेली मूरत प्रभु! तारी रे! तारा मुखड़ा उपर जाऊँ वारी रे, नाग नागणीनी जोड उगारी- अहो.२ धन्य-धन्य देवाधिदेवारे, सुरलोक करे तारी सेवारे, _ अमने आपो शिवपुर मेवा - अहो.३ तमे शिवरमणीना रसियारे, जई मुक्ति पुरी मां वसीयारे, मारा हृदय कमल माहे वसिया - अहो.४ जे कोई पार्श्वतणा गुण गाशेरे, भव-भवनां पातक जाशेरे, तेना समकित निरमल थाशे - अहो.५ प्रभु त्रेवीसभा जिन रायारे, माता वामा देवीना जायारे, अमने दरिशन द्योने दयाला- अहो. ६ हु तो लली लली लागुंछु पायरे, मारा उरमां ते हरख न मायरे, अम माणेक विजय गुण गाय - अहो.७ मूलनायक श्री चिन्तामणि पार्श्वनाथजी ४. गंधार तीर्थ मूलनायक - श्री अमीझरा पार्श्वनाथ भगवान ७० ईंच की प्राचीन प्रतिमाजी (श्वेत) अमीझरा पार्श्वनाथ महाराज की पेढ़ी मु. गंधार, वाया-वागरा, जि. भरूच, ३ मंदिर है। पहले १७ मंदिर थे। उस समय जैन धर्म का यहाँ जय जयकार होगा। भरूच से ४५ कि.मी. यह तीर्थ है। गुजरात का दूसरे नंबर का बंदरगाह था। विक्रम की सोलहवी शताब्दी में प. पू. आ. श्री हीर सूरीश्वरजी म. ने ३०० साधु ७०० साध्वियों के साथ तीन चौमासे किये । मुगल सम्राट अकबर के बुलाने पर उनको प्रतिबोध-संबोधन करने हेतु यहाँ से मान पूर्वक गये थे। अंतिम औरंगजेब बादशाह के समय में यहाँ के बंदरगाह का विनाश हुआ। उस समय यहाँ के श्रावको ने विचार कर यहाँ श्री अमीझरा पार्श्वनाथ की ७१ इंच की प्रतिमाजी को भोयरा में रख दी और ऊपर मस्जिद आकार का उस समय मंदिर बनाया। शेष छोटी प्रतिमाये राजपूत राज्यों में भेज दी। समुद्र के किनारे यह गन्धार गाँव ५०० वर्ष प्राचीन है। शान्त एवं रमणीय सुन्दर स्थल है। पू. आ. देव श्रीमद् विजय रामचन्द्रसूरिजी म. की वि. सं. १९६९ में दीक्षा हुई थी। इसके उपरान्त का सु. १५, मा.व.१०, चै.सु.१५, फा.सु. १२ को मंदिर की वर्षगांठ उजवाती है। वर्तमान में मंदिर के १२५ वर्ष हो गये । अन्तिम २०३७ में जीर्णोद्धार हुआ है। पहले यहाँ प्राचीन मंदिर इतिहास में उल्लेख है। उस अनुसार था। वि. सं. १६५८ में पू. आ. श्री हीर सूरिजी म. ने प्रतिष्ठा कराने के उल्लेख है। पास में २४ जिनालय श्री महावीर स्वामी के है। सं. २०२८ में पू. आ. श्री वि. रामचन्द्र सूरिजी म. ने यह प्रतिष्ठा करायी है। उपाश्रय है, धर्मशाला, भोजनशाला की व्यवस्था है। भरूच से २६ कि.मी. वागरागाँव होकर जाना होता है पास में भरूच कावी और दहेज तीर्थ है। *** * * ** * * ********* * *** * **** ०००
SR No.002430
Book TitleShwetambar Jain Tirth Darshan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendrasuri
PublisherHarshpushpamrut Jain Granthmala
Publication Year1999
Total Pages548
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size114 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy