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________________ श्री श्वेतांबर जैन तीर्थ दर्शन : भाग-१ ३. पादरा 285 पादरा जैन मंदिर मूलनायक श्री संभवनाथजी संभव देव ते धुर सेवो सवेरे, लही प्रभु सेवन भेद, सेवन कारण पहली भूमिका रे, अभय अद्वेष अखेद। संभव. १ भय चंचलता हो जे परिणामनीरे, द्वेष अरोचक भाव, खेद प्रवृत्ति हो करता थाकीये रे, दोष अबोध लेखाय। संभव.२ चरमावर्त हो चरण-करण तथारे, भव परिणति परिपाक, दोष टले वली दृष्टि खुले भली रे, प्राप्ति प्रवचन वांक। संभव.३ परिचय पातक घातक साधु शुं रे, अकुशल अपचय चेत, ग्रन्थ अध्यात्म श्रवण मनन करीरे, परिशीलन नय हेत। संभव.४ कारण जोगे हो कारज नीपजेरे, अमां कोई न वाद, पण कारण विण कारज साधीओरे, ओ निजमत उन्माद। संभव.५ मुग्ध सुगम करी सेवन आदरेरे, सेवन अगम अनुप, लेजो कदाचित् सेवक याचना रे, आनंद घन रस रूप। संभव ६ D मूलनायकजी - श्री संभवनाथजी यह मंदिर ५०० वर्ष पूर्व का है। आगे के मंदिर में चन्द्रप्रभुजी मूलनायक थे। उस मंदिर का विशाल विस्तार किया और मूलनायक के रूप में संभवनाथजी को प्रतिष्ठित किया। यह प्रतिमाजी भी प्राचीन है। पू. आ. श्री रामचन्द्र सूरिजी महा. का निवास स्थान है और पू. आ. श्री जिस भगवान की पूजा करते थे, उन शामला पार्श्वनाथजी का मंदिर भी वर्तमान में बिराजमान है। जो दरापूरा गाँव से प्रतिमाजी लाये थे वे प्रतिमा प्राचीन है। ____ शान्तिनाथ मंदिर जहाँ पर है वहाँ पर पूर्व में मू. ना. वासुपूज्य स्वामी थे। १३५ वर्ष पूर्व का है। वर्तमान में उसका जीर्णोद्धार हुआ है। पहले यहाँ पर ५०० घर थे- वर्तमान में ११० घर है। वडोदरा से २० कि.मी. है। कावी, गंधार, अणस्तु, दरापरा तीर्थ समीप में है। जयनिशाना शामला
SR No.002430
Book TitleShwetambar Jain Tirth Darshan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendrasuri
PublisherHarshpushpamrut Jain Granthmala
Publication Year1999
Total Pages548
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size114 MB
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