________________
४७८)
श्री श्वेतांबर जैन तीर्थ दर्शन : भाग-१
२. मेडता सीटी
मूलनायक श्री आदीश्वरजी
मेडता सीटी जैन देरासरजी मूलनायक श्री अषभदेवजी
मूलनायक की बाँये ओर श्री चंद्रप्रभ स्वामी की ११ मूर्तियाँ १० १ मूलनायक श्री ऋषभदेवजी का शिखरबंध देरासर है। वीं सदी की आसपास की है । बाँये कोने में पंचतीर्थी और बड़े सं. १६७७ में अंजन शलाका प्रतिष्ठा संपन्न हुई थी। देरासर पार्श्वनाथ गेहुं के रंग के आरस में से बनाये गये है। इससे भी पूराना है । श्री आनंदधनजी महाराज का यहाँ श्रावकों के महोल्ले में आनंदधनजी म. की छत्रीमें पादुकाएं स्वर्गवास हुआ था । श्री हीर विजय सू. म. यहाँ बहुत लंबे है सं. २००८ में प्रतिष्ठा संपन्न हुई थी। समय तक रहे थे।
९ श्री महावीर स्वामी की ६ प्रतिमा प्राचीन मंदिर की २ धर्मनाथ-३ प्राचीन मूर्तियाँ और देरासरजी है। धर्मनाथ बाजु में है । जीन्होंने वीर सं. १६८३ में प्रतिष्ठित भगवान के बाँये ओर प्रभुजी के नीचे सं. ६८४ का लेख है। बिराजमान है । अलग दो देरीमेंसे एक में सं. १६७७ का लेख आदीनाथजी धातु के बने हुए है । निकट के कमरे में धात की है । विजयसेन सू. म. के विजयदेव सू. म. ने प्रतिष्ठा की थी। अनेक छोटी बड़ी मूर्तियाँ है ।
जहाँ दो मूर्तियाँ है । मुनिसुव्रत स्वामी, महावीर स्वामी के दाहिने ३ श्री चिंतामणि पार्श्वनाथजी की प्रतिमा की प्रतिष्ठा सं. ओर की देरी में है । पादुकाएं बहुत है । श्री छोटे शांतिनाथजी १६६९ में हुई थी। ४ श्री शीतलनाथजी की प्रतिष्ठा सं. सं. १६५३ और अन्य प्रतिमाजी में सं. १६७७ के लेख है । १६७७ में हुई थी। ५ श्री कुंथुनाथजी की प्रतिष्ठा सं. १६८६ भगवान की पादुकाएं की तीन जोडी है। में संपन्न हुई थी । ६ श्री वासुपूज्य स्वामी की प्रतिष्ठा प्रतिष्ठा
नागोर स्टेशन के निकट के श्री चंद्रप्रभ स्वामी देरासर के सं. १६८३ में हुई थी । करीब नव मूर्तियाँ है । ७ श्री
शिलालेख में प्रतिष्ठा करनेवाले श्री ज्ञानसुंदरजी और श्री वासुपूज्य स्वामी की बाँये ओर प्रभुजी के नीचे सं. १६७७
गुणसुंदरजी ने श्री नेमी सू. म. के उपदेश के यह प्रतिष्ठा संपन्न
हुई थी ऐसा माना जाता है । ओसवाल सं. २३९३ वि. सं. लिखा हुआ है और श्री वासुपूज्य स्वामी की दाहिने ओर १९९३ का लेख मौजूद है। प्रभुजी के नीचे सं. १६८३ लिखा है । मूलनायक भी उसी समय के है ऐसा माना जाता है ।
८ श्री अजितनाथजी की प्रतिष्ठा सं. १६७७ में हुई थी।