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________________ राजस्थान विभाग : २ पाली जिला श्री मानदेव सू. म. ने जीस जगा पर बैठ के लघु शांति का मनाई थी । उसकी निकट में भूयहरा है । यह नाइलाई सुपार्श्वनाथजी के देरासर में मिलता है । दूसरा भूयहरा मानदेव सू. म. की मूर्ति और लघु शांति मनाई थी वह जगा मंदिर से बहार निकलते ही थोडी दूरी पर है । जीसकी अंदर नेमिनाथजी की बड़ी मूर्ति है । परिकर है और वह खंडित है चोविस भगवान है । उसकी अंदर यह नेमिनाथजी खंडित है । भूयहरे में उतरकर हम देख शकते है । लघु शांति ३०० साल पहले यहाँ बनाई थी । जैनों के ३५० घर है। तीन उपाश्रय, - एक धर्मशाला, एक भोजनशाला है । यहाँ का संघ इस जगा का वहीवट करता है । श्री नेमिनाथजीका यहाँ देरासर है । वह गंधर्वसेन राजा ने २७०० साल पहले बनवाया था। उस समय से आज तक घी का अखंड दिया जलता है। __मानदेव सूरिने गिरनार पर समाधि युक्त कालधर्म पाया था श्री नेमिनाथजीका बावन जिनालय होगा हाल में वह जगा खाली है । जिर्णोद्वार में पूराने अवशेष दूर कर दिये है । यहाँ से राणी स्टेशन १० कि.मी. की दूरी पर है । fua मूलनायक श्री पद्मप्रभस्वामी Seताजा प्रभु दर्शन सुख संपदा, प्रभु दर्शन नवनिध; प्रभु दर्शनथी पामीये, सकल पदारथ सिद्ध. भावे भावना भावीओ, भावे दीजे दान; भावे जिनवर पूजीओ; भावे केवळ ज्ञान. जीवडा जिनवर पूजीओ, पूजाना फल होय; राज नमे प्रजा नमे, आण न लोपे कोय. फूलडां केरा बागमां, बेठा श्री जिनराय; जेम तारामां चंद्रमा, तेम शोभे महाराय. वाडी चंपो म्होरियो, सोवन पांखडीओ; पार्श्व जिनेश्वर पुजीये, पांचे आंगणीये. त्रिभुवन नायक तुं धणी, मही मोटा महाराज; म्होटे पुण्ये पामीयो, तुज दरिसन हुं आज. आज मनोरथ सवि फल्या, प्रगटया पुन्य कलोल; पाप करम दुरे टळ्या, नाठा दुःख दंदोल. प्रभु नामनी औषधि, खरा भावथी खाय; रोग पीडा व्यापे नहि, महादोष मीट जाय. नाडोल तीर्थ जैन देरासरजी जाणमा
SR No.002430
Book TitleShwetambar Jain Tirth Darshan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendrasuri
PublisherHarshpushpamrut Jain Granthmala
Publication Year1999
Total Pages548
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size114 MB
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