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________________ गुजरात विभाग : १६ भरूच जिला E0% (३०५ 樂樂樂樂樂樂樂樂樂樂樂樂敏敏敏樂樂樂樂医 मूलनायकजी श्री आदीश्वर भगवान मुख्य मंदिर नदी के किनारे पर था, वह डूब जाने से प्रतिमाजी और छत खिसकाकर ले आये । प्रतिमाजी मूल थी उसकी प्रतिष्ठा सं. २०३० में की तथा २०२४ में नूतन सुंदर मंदिर बनवाया। भरूच से यहाँ आ सकते है। पेढी मूलनायकजी श्री आदीश्वर भगवान १२. झघडीयाजी तीर्थ श्री रिखव देव महाराज की ट्रस्ट पेढ़ी दूसरा पुंडरीक स्वामी का मंदिर। २७ इंच के सफेद आरस में प्रतिमा जी उत्कीर्ण की है। श्री दक्षिण गुजरात में नर्मदा किनारे आया हुआ श्री जगडीयाजी तीर्थ सम्पूर्ण भारत में सुप्रसिद्ध है। प्रतिमायें मिली उस समय यह गाँव राजपीपला स्टेट में था। सात वर्ष तक महाराजा ने प्रतिमाओं की पूजा की। संघ के विनती करने पर राजा ने प्रतिमाओं को सोपा और भरूच जगडीया संघ ने सुन्दर शिखरबन्द मंदिर बनाकर सं. १९३९ वै. सु. ४ को जीर्णोद्धार करके पुनः प्रतिष्ठित किये। प्रतिमाये संप्रति महाराजा ने भरवाई है। ई. सं. १९४४ का भी लेख है। दूसरा महत्व यह भी है कि वि. सं. १९२१ में गाँव के खेत में से थोड़ी प्रतिमायें मिली। जब तक भरूच वड़ोदरा के श्रावक वहाँ के राजा के पास प्रतिमाजी लेने गये तब राजा ने कहा कि मैं मंदिर बनवाकर इस प्रतिमा की प्रतिष्ठा कराऊंगा। क्योंकि यहाँ पर एक भी श्रावक नहीं है। यदि तुम श्रावक लोग यहाँ आकर रहो तो मैं तुम लोगों के सुपुर्द करूँगा। यहाँ ३० वर्ष राजा ने व्यवस्था करके श्रावकों को मंदिर सुपुर्द किया। धर्मशाला, भोजनशाला, उपाश्रय है। अंकलेश्वर, सूरत, भरूच, अहमदाबाद से बसों की तथा रेल के मार्ग से भी आ सकते है। निकोरा, भरूच व शुक्ल तीर्थ समीप में है। ***** 337 PaiNOJ 不來來來來來來來來來來來來來必 झघडीयाजी तीर्थ जैन मंदिर 樂樂樂樂&&&&&樂樂樂樂樂樂樂樂樂樂樂樂魚
SR No.002430
Book TitleShwetambar Jain Tirth Darshan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendrasuri
PublisherHarshpushpamrut Jain Granthmala
Publication Year1999
Total Pages548
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size114 MB
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