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________________ गुजरात विभाग :८- बनासकांठा जिला YOX मूलनायक - श्री गोडी पार्श्वनाथ यहाँ पर प्राचीन मंदिर हैं ५०० वर्ष प्राचीन - यह घुमट वाला मंदिर है। प्राचीन देरी में गोडी पार्श्वनाथ की चरण पादुका (पगला) है। जहाँ पर मंदिर था वहाँ पर दुसरा मंदिर थरा के रहने वाले शाह कालिदास घेलचंद ने नया बनाया है। __पाटण (गुजरात) के कुमारपाल राजा का राज्य था। यहाँ आ.श्री हेमचन्द्राचार्य म. की परम तारक निश्रा में वि.स.१२२९ में प्रतिष्ठा महोत्सव अंजनशाला कलिकाल सर्वज्ञ आचार्य देवश्री हेमचन्द्राचार्य के शिष्य रत्न बालचन्द्र ने खराब मुहूंत (आचार्य पदवी के लोभ में) देखा। अजयपाल को राजगद्दी कालोभ था। सच्चा मुहूर्त था तब वहाँ से प्रतिमा लेकर आदमी आया उससे पू.श्री को अशुभ षडयन्त्र ज्ञात हुआ। उसी समय उन्होने कहा कि मेरी एवं कुमारपाल राजा की मृत्यु ६ माह में होगी- उन तीन प्रतिमाओं की सच्चे मुहूंत में अंजनशाला हुई उनमें से एक पाटण के भोंयरा में एक तारंगा और एक महेमदाबाद को पधराई। आज इस प्राचीन मंदिर के बाजु में नूतन मंदिर तैयार हो रहा है। उपाश्रय नवीन तैयार है। यह जैन तीर्थ बनासा कांठा जिला के काँकरज । तालुका के || रूणी ग्राम में है थरा से ३ कि.मी. है। ६. पालनपुर SSSSSS सब बात कही पाप के निवारण करने को कहा ।आचार्य जी ने उनको पार्श्वनाथ प्रभुजी का मंदिर बनाने तथा प्रभुजी का न्हवण जल छीटने को कहा। उन्होंने भी उसी प्रकार किया एवं निरोगी हो गया तथा धर्म की प्रभावना की। वह विद्वान था। बहुत सारे ग्रन्थ बनाये थे। 'पार्श्व पराक्रम आयोग' नाम का नाटक ग्रन्थ आज भी मौजूद है। राणकपुर की प्रतिष्ठा कराने वाले में श्री सोम सुन्दर सूरि म. का वि. सं. १४३० में यहाँ पर जन्म हुआ। जगदगुरू हीरसूरिजी म. का १५८३ में यहाँ है जन्म हुआ। इस मंदिर के सामने बहिनो का उपाश्रय है। यह उनकी जन्म भूमि गिनी जाती है। इस मंदिर में दूसरी भी भव्य प्रतिमायें है। १३५५ में माँ अम्बिका की मूर्ति तथा १२७४ में सर्वदेव सूरिजी म. की गुरु प्रतिमा में लेख है। दूसरे १४ मंदिर हैं उनमें भी प्राचीन प्रतिमायें है ।शान्तिनाथ मंदिर मोटा ब्रह्मवास में १८४८ वै.सुदी ६ शुक्रवार प्रतिष्ठा का लेख है। महावीर स्वामी मंदिर के मंडप में १९८९ माघ सुदी १३ दुसरे गुरूवार को पालनपुर निवासी हीरालाल रायचंद के भणशाली परिवार ने प्रतिष्ठा कराई ऐसा लेख है। यहाँ तथा अमीरगढ मे निकली हुई ११७५ तथा १८४४ की महावीर स्वामी आदि की प्रतिमाओं की १९९८ में आ.ललित सूरिजी महा. कस्तूरसूरिजी महा.के वासक्षेप से प्रतिष्ठा करायी है। पल्लवीया पार्श्वनाथ जैन मंदिर जी मूलनायक - श्री पल्लविया पार्श्वनाथजी हनुमान शेरी, पालणपुर आबु के परमार राजा धारावर्ष देव के भाई प्रहलाद ने तेरहवी सर्दी में प्रहलादनपुर अपने नाम से बसाया। यह प्रहलादन राजा जैन धर्मी बना और यह जिन मंदिर बनाकर प्रतिष्ठा करायी ।संयोगवश इस प्रतिमा का उत्थापन हुआ और सं.१२७४ में फाल्गुन सुद ५ को कोरंट गच्छीय आ. श्रीक्क सूरिजी म.के हस्ते वर्तमान प्रतिमा की प्रतिष्ठा हुई ।प्रहलादन पार्श्वनाथ राजा के नाम से कहलाया। अभी वे पल्लवीया पार्श्वनाथ कहलाते है। कहा जाता है कि राजा प्रहलाद ने आबू देलवाड़ा की एक विशालकाय धातुमय प्रतिमा गलाकर अंचलेश्वर महादेव के मंदिर में नंदी बनाया था। उससे उसको कोढ़ निकला वह जंगल मे जाता रहा वहाँ श्री शालिभद्र सूरिजी म.उसको मिले।
SR No.002430
Book TitleShwetambar Jain Tirth Darshan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendrasuri
PublisherHarshpushpamrut Jain Granthmala
Publication Year1999
Total Pages548
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size114 MB
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