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श्री श्वेतांबर जैन तीर्थ दर्शन : भाग-१ Co06666666
१५. शुक्ल तीर्थ
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શ્રી ડી. / / / કેeગવાત मूलनायक श्री आदीश्वरजी
शुक्ल तीर्थ जैन मंदिर
मूलनायकजी- श्रीआदीश्वरजी नर्मदा नदी के किनारे बसा हुआ गाँव जिसका पूर्व नाम भृगुनगरी था। वह आज शुक्ल तीर्थ कहा जाता है। यहाँ घर मंदिर था। वहाँ वीर सं. २४१२ में शिखरबंद मंदिर बनाकर प्रतिष्ठा करी है। पांच धातु की प्रतिमाये बहुत प्राचीन है। समीप में झघडीया तीर्थ है। नेत्रंग, राजपीपला वि. मंदिर है।
भरूच से १२ कि.मी. दूर है।
प्रथम जिनेश्वर प्रणमीये, जास सुगंधीरे काय, कल्पवृक्ष परे तास इन्द्राणी नयन जे, भंग परे लपटाय, रोग उरग तुझ नवि नडे, अमृत जे आस्वाद, तेह थी प्रतिहत तेह मांनु कोई नवि करे, जगमा तुमशुंरे वाद विगर धोई तुझ निरमली, काया कंचन वान, नहि प्रस्वेद लगार तारे तुं तेहने, जे धरे ताहरूं ध्यान, राग गयो तुझ मन थकी, तेहमां चित्र न कोय, रूधिर आमिष थी राग गयो तुझ जन्म थी, दूध सहोदर होय,
श्वासोश्वास कमल समो, तुझ लोकोत्तर वाद, देखे न आहार निहार चरम चक्षु घणी अहवा तुझ अवदात चार अतिशय मूल थी, ओगणीश देवना कीध कर्म खप्याथी अग्यार चोत्रीश एम अतिशया
समवायांगे प्रसिद्ध जिन उत्तम गुण गावतां, गुण आवे निज अंग पद्म विजय कहे अह समय प्रभु पाल जो,
जेम थाऊं अक्षय अभंग
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