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પાત્ર વિગણિત જમણા
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मुलनायक श्री अजितनाथजी
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७. वांकानेर
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मूलनायक श्री अजितनाथजी
इस भव्य नक्काशी युक्त मंदिर की १८५९ में वैशाख सुदी ७ को प्रतिष्ठा हुई। मंदिर का जीर्णोद्धार हुआ है। सौ वर्ष ऊपर के श्री चन्द्रप्रभ स्वामी का दूसरा भव्य मंदिर है। उसका भी जीर्णोद्धार अच्छी प्रकार हुआ है। मू. पू. जैनियों के १९० घर हैं।
इन प्रभुजी की राज ज्योतिषी नथुभाई ने १०० फुट लम्बी विगत पूर्ण जानकारी सहित लग्न पत्रिका बनाई है। राजकोट से ३० कि.मी. है।
८. मोरबी
श्री अजितनाथजी जैन मंदिर
मूलनायक श्री धर्मनाथजी
विक्रम संवत १८१० जेठ वद १ को महेता वीरचंद लक्ष्मीदास तथा संघ ने मिलकर यह शिखर बन्द मंदिर बनवाया है। प्रतिमा प्राचीन है। बढ़वाण से लायी है। प्लॉट में श्री अजितनाथ प्रभु का देरासर भी है। पास में उपाश्रय है। राजकोट, तथा राजकोट से कंडला कच्छ हाईवे तथा जामनगर से कच्छ (वाया जोडिया) हाईवे पर आया है। सौराष्ट्र के हर शहर से बसें आती है।
श्री श्वेतांबर जैन तीर्थ दर्शन भाग-१
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श्री सिद्धाचल नवणे जाता, हे मारू हर्ष घरे, ए गिरिवरनो महिमा मोटो, सुगता तनहुँ नृत्य करे। कांकरे कांकरे अनन्त सिद्ध, पावन ए गिरि दुःखड़ा हरे । अ तीरधनु शरणुं होजो, भवो भव बन्धन दूर करे।
हे देव तारा दिलमां वात्सल्यना झरणां भर्या, हे नाथ तारा नयन में, करूणातणा अमृत भर्या, वीतराग तारी मीठी माधुरी, वाणी में जादु भर्वा, तेथीज अमे तारा शरण मां बालक बनी आवी चड्या