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राजस्थान विभाग : २ पाली जिला
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मूलनायक श्री चौमुखजी आदीश्वरजी
परिकरवाली भव्य मूर्ति है और निकट में वैसी ही मूर्ति 5 राणकपुर मंडन चौमुखजी के आगे सं.१४९६ का एक लेख पार्श्वनाथजी की है और निकट में धरणाशाह की मूर्ति है। है । श्री धरणाशाहने यह मंदिर बनाया है । चौमुखजी मुख्य नलिनी गुल्म विमान (१२वाँ देवलोक) जैसा यह देरासर आदीश्वर पीछे मूर्ति कुमारपाल के वस्तुपाल-तेजपाल की है उसकी संघवी धरणाशाह के द्वारा बनाया गया हैं यह आदीश्वर देरासरजी आसपासमें चौथी मूर्ति भी उसी समय की है १४४४ स्थंभ की प्रतिष्ठा सं. १४९६ में आ. देवश्री सोमसुंदर सू.म. के वरद् कलायुक्त है विशाल मंदिर में नक्कासी अद्भुत है । दूसरे बहुत से हस्तों से संपन्न हुई थी । इसका जिर्णोद्धार शेठ श्री आनंदजी लेख है । सं. १४१६ के पहले के समय के कोई नहीं है। कल्याणजी की पीढी की ओरसे कीया गया है । और उसकी
मुख्य देरासरजी श्री चौमुखजी आदीश्वरजी की भमति में ६ प्रतिष्ठा पू.आ. श्री उदयसूरीश्वरजी म. के हस्तों से सं. २००९ फूट के प्रभुजी की नीचे सं. १६७५ का लेख है । प्रतिमाजी फाल्गुन सुद पंचमी के दिन हुई थी । यहाँ सुपार्श्वनाथजी के नीचे । प्राचीन है । भमती के चौक में नंदीश्वर दीपकी आरस की दो बडी सं. १५१६ का लेख है । जो पढा जा शकता है। प्रतिमाएं है । वहाँ शेठ की खड़ी मूर्ति के नीचे सं. १७२३ का मूलनायक आदीश्वरजी की बहार दाहिनी बाजु में भमति में | लेख है । भमति में श्री शांतिनाथजीकी परिकरयुक्त बड़ी मूर्ति के अष्टापद तीर्थ मंदिर है । उसकी प्रतिष्ठा सं. १५३२ में आ. श्री नीचे सं. १५१३ का लेख है । नाक उपर से खंडित है । निकट में ।
लक्ष्मीसागर सू. म. ने की थी। हाथी पर शेठानीजी बैठे है। वैसी ही ३-३.१/२ फूट की श्री नेमनाथजी की मूर्ति में भी नाक
सं. १७२८ का लेख है । यह मंदिर आ. श्री सोमसुंदर सू. म. के
उपदेश से बंधाया गया है । यह मंदिर को बनानेवाले शेठ श्री की नोंक (अणी) पर खंडित जगा है जो मरम्मत की गई है।
धरणाशाह नांदिया निवासी शेठ कुंवरपाल और शेठानी कामलदे के भमति की सभी छोटी बड़ी प्रतिमाजी की प्रतिष्ठा सं. २००९
पुत्र थे और वे राणा कुंभा के शूरवीर मंत्री भी थे, उनको मंदिर फाल्गुन सुद ५ बुधवार के दिन प्रतिष्ठा संपन्न हुई है । भमति में
बनाने की भावना जागृत हुई स्वप्न में नलिनी गुल्म विमान देखा श्री सुपार्श्वनाथ फणा सहित नीचे स्वस्तिक लांछन श्यामवर्ण
और वैसा ही यह मंदिर बनवाया दीपा कलाकार ने उनकी सूचना अनुसार नकशे बनाये वे पसंद आये उसे सात मंझिला बनाने की योजनाथी पर अंत समय नजदिक है । वैसा महेसुस हुआ सिर्फ तीन मंझिल को पूर्ण किया ।
चार दिशाओं में चार महीधर प्रासाद चार शिखरों से जुड़ी हुई चार बड़ी देव कुलिकाये है। और ७६ शिखरबंध धजाओ के साथ छोटी देव कुलिकायें है ऐसे कुल मिलाकर ८४ देवकुलिकायें ८४ लाख जीवयोनी वाले भवसागर को पार करने के लिये है । चारों दिशा में ४ मेघनाद मंडप अद्वितीय है।
१४४४ स्थंभ हैं और हर ओक स्थंभ के पास कोई भी एक देरी के भगवान दिखाई देते है । वैसी रचना बनाई गई है । हर एक स्थंभ विविध और भिन्न कारीगरी से युक्त है । स्थंभो की उंचाई ४० फूट की है और उसमें भी बहुत बारीक नक्काशी है। मेघमंडप एक से बढ़कर एक जैसी कला और कारीगरी पूर्ण है। चौथा मंडप उनके भाई रला शाह का है । भाई की उदात्त भावना को साकार करने के लिये सब से बढकर नक्काशी काम किया गया है । आबु की नक्काशी और राणकपुर की बांधनी - तारंगा की उंचाई और शत्रुजयका महिमा कहावत है २५०- २५० किलो
के दो नरमादा घंट - जीसमें से " ओं" रणकार निकलता है जो राणकपुर नक्काशी सर्प सीडी
तीन कि.मी. की दूरी पर से सूनाई देता है । यहाँ पार्श्वनाथ भगवान और नेमिनाथ भगवान का भी मंदिर है । गोलवाड़ पंचतीर्थी का यह मुख्य स्थल है। धर्मशाला और भोजनशाला की सुविधा है । सादडी से यह तीर्थ १० कि.मी. की दूरी पर है।
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