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श्री श्वेतांबर जैन तीर्थ दर्शन : भाग-१
क्रोड-क्रोड वंदना श्री वीरजी स्वीकारजो,
चित्तनो तुं चोर कहेवाय, जिन त्हारी मनहर आंखलड़ी रोज-रोज पातिकडा मारा निवारजो,
आनंद-मंगल वरताय, प्रभु तुज सुणतां वात लडी डगले पगले त्हारा गुणो संभारता, गुणो म्हारा प्रभु खूब अजवालता,
साँचु गुण झट लेवाय, जिन. चन्द्र चकोर ज्यु प्रीतड़ी में बांधी पाप कर्मों नी कुडी टाली में आंधी,
हवे नहि वियोग सहाय, जिन. मोह राय प्रभु तुझ दर्शन थी डरियो, प्रभु तुझ पूजन थी दरियों हुं तरियो,
___ क्यारे प्रभु भेला थवाय, जिन. गुरु कर्पूरसूरि अमृत बोले त्रण जगत माँ कोण त्हारी तोले
गुण गावाने दिल लोभाय. जिन.
मूलनायक श्री महावीर स्वामी
मूलनायकजी : श्री महावीर स्वामी श्री पोशीनाजी साबरकांठा जिला में ईडर से २२ कि.मी. दूर ऐतिहासिक तीर्थ है। गगनचुम्बी पांच शिखरों से सुशोभित जिनालय १२ वीं सदी में अठारह देश के अधिपति महाराज कुमारपाल ने बनवाये हैं।
पोशीनाजी में विराजित प्रगट प्रभावी श्री पार्श्वनाथ प्रभु की प्रतिमा २१०० वर्ष प्राचीन संप्रति महाराज के समय की है। यह प्रतिमा लगभग १ १२०० वर्ष पूर्व कंथेर के वृक्ष के नीचे से निकली थी।
वि. सं. १४८१ में जीर्णोद्धार का शिलालेख है। बाद में १७ वीं शताब्दी में आ. श्री विजय देव सूरिजी म. के समय में जीर्णोद्धार करवाने का उल्लेख है।
दूसरी प्रतिमाओं के ऊपर वर्तमान में १२०१ से १७ वी शताब्दी के उत्तरार्द्ध तक के लेख मिलते हैं । थोड़े वर्षों पूर्व इस तीर्थ का जीर्णोद्धार तथा जिन बिम्ब प्रतिष्ठा पू. आ. श्री लब्धि सू. म. सा. के उपदेश से हुई थी। - इस तीर्थ का चमत्कार खूब है। यात्री गणों के आगमन का दिव्य संदेश प्रदान करने भारी पवन में भी पाँच शिखरों की ध्वजाओं में से कोई भी एक ध्वजा स्थिर होकर यात्रीगणों का आगमन सूचित करता है।
पू. गुरु महा. स. उद्घाटन के प्रसंग पर पधारे थे - उनको मध्य रात्रि में बहुत ही कर्ण प्रिय संगीत गुंजायमान होता था। जेठ सुदी ११ को ध्वजा चढ़ाई जाती है।
मार्गशीर्ष वदी १० को बहुत विशाल मेला भरता है। वि. सं. २०४३ में आ. स्थूलभद्र सूरिजी म. की निश्रा में चन्द्रप्रभुजी आदि जिन बिम्बों की प्रतिष्ठा, दीक्षा, नूतन उपाश्रय, धर्मशाला, भोजनशाला आदि शुभ अवसर प्राप्त हुए।
इस पोशीना तीर्थ में आने के लिए अहमदाबाद, हिम्मतनगर, ईडर से बस-जीप मिलती है।
MOM AM KOM AM NOM AON
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