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राजस्थान विभाग : ११ जयपुर जिला
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श्री रावण पार्श्वनाथजी
नीचे के भागमें श्री चंद्रप्रभ स्वामी मूलनायक श्री रावण पार्श्वनाथजी
जमीन में से देरासर और प्रतिमाजी मिले है । अनेक समय जिर्णोद्धार हुआ है । धर्मशाला और उपाश्रय है । १०८ पार्श्वनाथ में इसका उल्लेख है । रावण के समय की प्रतिमाजी प्राचीन है। ईस लिये उसका नाम रावण पार्श्वनाथ दिया गया है। सब प्रतिमाजी सुंदर है।
ठि. बिरबल महोल्ला, अलवर-३०१ ००१. (राजस्थान)
४. भांडवपुर
मूलनायक श्री महावीर स्वामी
मेंगलवा से होकर भांडवा में आया और संघवी पालजी को स्वप्न 5 यह देरासर नाना भांडवपुर गाँव की बहार है । भूतकाल में में मंदिर बनाकर प्रतिष्ठा करने का संकेत मिला । स. १२३३ में। यह एक बड़ा नगर था । सं. ८१३ में वेसाला गाँव में प्रतिष्ठित इस प्रकार बावन जिनालय हुआ और प्रतिष्ठा भी हुई उनके . हुए यह महावीर स्वामी की मूर्ति की यहाँ सं. १२३३ महा सुद वंशज की और से ध्वजा चढ़ाई जाती है । चैत्र मास की सुद १३ पँचमी के दिन प्रतिष्ठा हुई थी।
से १५ तक यहाँ मेला लगता । वेसाला नगर में मुसलमानों के आक्रमण से मंदिरको धर्मशाला और भोजनशाला है । जालोर से ५६ कि.मी. नुकशान हुआ था । तब कोमता गाँव के संघवी पालजी गाड़ा में किशनगढ से ४० कि.मी. और सायलासे ३० कि.मी. का अंतर इस प्रतिमाजी को लेकर चले पर गाड़ा कोमता जाने के बजाय है, वहाँ से तार टेलि. की सुविधा भी है।