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________________ राजस्थान विभाग : २ पाली जिला (३७३ अंतिम जीर्णोध्धार विजयानंद सू. म. के परिवार के आ. श्री विजय वल्लभ सू. म. के वरद् हस्तों से वि.सं. २००६ के मृगशीर्ष मास की सुद ६ के दिन संपन्न हुआ था । अंजन प्रतिष्ठा हुई थी। भमति के आगे चौक में श्री यशोभद्र सू. म. की मूर्ति देरी में है। जीस के पर सं. १३४४ के महा सुद ११ का लेख है | उसकी आगे नव आचार्य आदि के पादुका और छत्रियाँ है । देरासर के पीछे के भाग में देवी चक्रेश्वरी की मूर्ति पर सं. १९५९ का लेख है । पून्य सागरजी के शिष्य मुनि श्री पद्म सागरजी ने प्रतिष्ठित किया है। इसके अलावा प्राचीन देरासर के अवशेष दिवाल पर लगाया है और इस के नीचे दिवाल में लगाया हुआ वि. सं.१७२२ का लेख है । एक कमरे में पुरानी हथुडी नगरी के अवशेष रखे गये हैं। जीसमें वि. सं. १०५३ का प्रबासण है। विशाल जिनालय करने के लिये भमती के वि. सं. ९७३, ९९६, १०५३ का शिलालेख यहाँ से नीकाल कर अजमेर के संग्रहस्थान में ले गये है । इस बात का उल्लेख दरवाजे पर प्रवेश करते समय उपर लिखा है । राता महावीर की मूर्ति लाल चूनावाली पहले दिवाल बनाकर बाद में मूर्ति की नक्काशी की गई है । नीचे भूयहरे में महावीर स्वामी की मूर्ति की (नई) प्रतिष्ठा वि. सं. २००६ में संपन्न हुई है । सं. २००६ में गादी सहित राता महावीर को उसी जगे पर आधार दे कर दो मास तक अध्धर रखकर नीचे ३० फूट का खड़ा गाड़कर उसके नीचे से पूराना पबासन निकाल कर उसके पर मूलनायक पहले की तरह उसी जगह पर भगवान को बिठाए गये हैं। प्राचीन हथुडी नगरी के अवशेषों जैन संघ की जगा के बाहर आज भी मौजुद है । हाल में विशाल समवसरण मंदिर पू.मु. श्री अरुणविजयजी म. के उपदेश से बने हैं । उनकी जन्मभूमि विजापुर है । पू. पं. श्री भद्रंकर विजयजी गणिवर और पू.आ. श्री कलापूर्ण सू.म.की निश्रामें सं. २०२९-३१-३२ में उपाधान हुए तब से यह तीर्थ ज्यादा प्रचार में आया है | बाली से नाणा जाते समय सेवाडी होकर बिजापुर गाँव से ३ कि.मी. के अंतर पर है। VIRAIL लालरंग के महावीर मँयहरे में महावीर स्वामी
SR No.002430
Book TitleShwetambar Jain Tirth Darshan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendrasuri
PublisherHarshpushpamrut Jain Granthmala
Publication Year1999
Total Pages548
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size114 MB
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