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श्री श्वेतांबर जैन तीर्थ दर्शन : भाग-१
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२. सोरठ वंथली
सोरठवंथलीजैनदेरासरजी
मूलनायक श्रीशीतलनाथजी
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मूलनायक श्री शीतलनाथजी
शिलालेख - संवत १९५६ में कुआखोदते समय उस स्थान से प्रगट हुई शीतलनाथ जी प्रभु का यह प्रासाददेश सोरठ रैवताचल के पास जूनागढ़, अंतर्गत वंथली में बंथली के निवासी संघवी मुलजी उका के सुपुत्र हरजीवन देवकरण मूलजी ने, पं. श्री गंभीरविजयजी म.सा. के शिष्य चारित्र विजयजी के सदुपदेश से अपने कल्याण हेतु निर्माण करवाया है। प्रतिष्ठा भी इस प्रासाद का निर्माण करवाने वाले ने मुनि श्री चारित्र विजयजी की निश्रा में संवत १९७१ जेठ सुदी ६ शुक्रवार वीर सं. २४४१ सन १९१५ को कराई। ऊपर के माल में श्री चन्द्रप्रभु-पद्मप्रभु जी एवं अजितनाथ की प्रतिमायें विशालकाय (साढ़े चार फीट) हैं। उन प्रतिमाओं का इतिहास इस प्रकार हैं:
विक्रम संवत १९१३ की साल में श्रा. सु. दूज बुधवार को पूर्व दिशा का पाया खोदते समय जमीन में से निकली हैं।
जिसकी प्रतिष्ठा संवत १९३१ वै. सु. १५ गुरूवार मुनिश्री गुमान वि.म. हस्तक हुई हैं। ऊपर के तल में श्री आदीश्वर प्रभु की तीसरी प्रतिमा हैं, जो पालीताणा से लायी हुई कहलाती हैं। यह प्रतिमासाड़े चार फुट की हैं। पास में महावीर स्वामी का देरासर है। ___ यह सोरठ वंथली ग्राम जूनागढ़ से १४ कि.मी. पर हैं। बस की व्यवस्था हैं। रेल्वे स्टेशन भी हैं। जूनागढ़-वेरावल हाईवे पर आता हैं। वर्तमान में जैनियों के ४० घर हैं। बस्ती४५००० उपाश्रय है धर्मशाला है। भाता खाता (नाश्ता विभाग) हैं।
इस गाँव का नाम असल में देवस्थली था। यहाँ पर बहुत से देवालय थे। आज भी खुदाई करते समय प्राचीन देव मन्दिरों के अवशेष मिलते हैं। बागबगीचे आदि के कारण वर्तमान नाम वंथली हो गया।
यहाँ वर्तमान में मूलनायक श्री शीतलनाथजी की विशालकाय पाँच फुट ऊँची प्रतिमाजी हैं । इस देरासर के तीन गर्भगृह हैं । मध्य में मूलनायक शीतलनाथजी, बाई तरफ के पास गर्भगृह में शान्तिनाथजी, दायी तरफ के गर्भगृह में पार्श्वनाथजी । मूलनायक श्री शीतलनाथजी की प्रतिमा विक्रम संवत १९५६ में गाँव की सीमा में कुआ खोदते समय निकली है।
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