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________________ राजस्थान विभाग : ७ जोधपुर जिला (४६३ 000 उस समय श्री संघने नाकोर नगर के श्री पार्श्वनाथ सहित १२० तीर्थ माना जाता है। प्रभाव बहुत है । पहाड़ी की तलहटी में है। जिनमूर्तियाँ नाकोर नगर से दो मील दूर कालीद्रह (नागद्रह) में वि. सं. १५११ के यहाँ नाकोड़ा भैरव की स्थापना श्री कीर्तिरल छूपाई थी । बादशाहने दोनों नगर और मंदिर को लुटा था । . सू.म. के हस्तों से हुई । जैन सत्य प्रकाश वर्ष ७ अंक ५ में वर्षों तक यह दोनों नगर निर्जन हो गये थे । बाद में धीरे धीरे उल्लेख है कि रावनिंदे ने अमरकोट से वहाँ आकर सं. १५६९ । विरमपुर तो आबाद बन गया और वहाँ प्राचीन मंदिरों के स्थान में महेवानगर बसाया पर दूसरे प्रमाण जो मिलते है कि संवत 10 पर फीर से नया जिनमंदिर बनाकर नाकोर नगर के निकट में १६०० की सदी में इस नगर ने बहुत उन्नति प्राप्त की थी। कालिद्रह में सुरक्षित रखी हुई मूर्ति को वापस लाकर स्थापित की आज महेवा नगर प्राचीन वीरमपुर की जगा पर बसा था । और वहाँ मूलनायक नाकोर नगर के श्री नील वर्णा पार्श्वनाथजी २ श्री शांतिनाथ के मंदिर में नीचे का लेख मिलता है । १ की मूर्ति की प्रतिष्ठा करवाई । प्रतिमाजी बड़ी अद्भुत और दर्शनीय थी । नाकोर नगर का नाम अपभ्रंश होकर नाकोड़ा बन सं. १५१८ में मालाशाह ने यह शांतिनाथजी का मंदिर बनवाया गया । मंदिर की प्रतिमाजी नाकोर नगर से लाई गई थी । इस था और प्रतिष्ठा करवाई थी । २ सं. १६०४ में दूसरा सभा लिये यह वीरमपुर के नये जिनमंदिरका नाम नाकोड़ा पार्श्वनाथ मंडप बना । ३ १६१४ में नाभि मंडप बनाया । ४ सं. १६६६ तीर्थ पड़ा । वि. सं. की १७ वीं सदी तक यह नगर संपूर्ण में भूमिगृह बना । ५ सं. १९१० में मंदिर का प्रतिष्ठा महोत्सव आबाद रहा । उसी समय जैनों के २७०० घर थे । पर एक हुआ। श्री शांतिनाथजी की प्रतिमा संप्रति राजा के समय की है। छोटी सी मश्करी में यह नगर का फीर नाश किया या तो ३ श्री ऋषभदेवजी का मंदिर लाछाबाई नाम के श्राविका ने बरबाद हुआ, एक समय वीरमपुर के राजकुमार की साथ वहाँ सं. १५१२ में बनवाया था। यह लाछाबाई मालाशाह के बहन के मालाशाह के वंशज श्री नानकजी संकलेचा नामके धनाढ्य थी । १६ वीं सदी में वीरमपुर में यह श्राविका थी । ऐसा और प्रतिष्ठित शेठ तालाब पर नहाने गये । यह शेठ को बड़ी उल्लेख मिलता है । लाछाबाई निःसंतान थी । उन्होंने श्री जिनेन्द्र चोटी रखने का शौक था । उसकी चोटी गाँव में सब से बड़ी भक्ति में बहुत धन खर्च किया था । सं. १५१२ में तपगच्छीय और सुंदर थी । उसे देखकर राजकुमार ने कहा कि शेठ तुम्हारी श्री हेमविमल सू. के हाथों से श्री विमलेनाथ प्रभुजी की प्रतिष्ठा चोटी यदी चाबुक बनायें तो बहुत सुंदर बनेगा । यह मजाक . करवाई थी। उसके बाद श्री विमलनाथजी की जगा पर श्री शेठ को तीर के जैसे चुभ गई । राजकुमार और शेठ के बीच ऋषभदेवजी की प्रतिष्ठा कब हुई । उसका कोई उल्लेख मिलता मरमा गरमी हो गई और परिणाम स्वरूप शेठ वीरमपुर को नहीं है । संप्रति राजा के समय की प्राचीन प्रतिमाजी है । यहाँ छोड़कर जेसलमेर और बाड़मेर जा बसे उनके साथ और बहुत नीचे बताये हुए लेख प्राप्त है । १ सं. १५१२ में यह मंदिर का से जैन भी वीरमपुर छोड़ गये । जब राजा को इस बात का पता निर्माण हुआ था और प्रतिष्ठा भी संपन्न हुई थी । २ सं. चला तब राजकुमार पर बहुत नाराज हुए और शेठ को वापस आने की विनंति की पर शेठ वापस नहीं आये, धीरे धीरे सारा १५६५ में श्रृंगार चोकी का निर्माण हुआ । सं. १६३२ में • गाँव खाली हो गया । आज सिर्फ यहाँ तीर्थ रहा है। प्रवेशद्वार बना । ४ १६४७ में चित्रों और पूतलीयाँ के सहित सं. १९९१ में अंजन शलाका के समय इस गाँव का पानी नहीं नया मंडप बना । ५ सं. १६६७ में पूनः श्रृंगार चोकी बनी । पीने का संघने निश्चय किया था और फीर अंतिम स्वरूप देकर नँयहरे में १२ से १७ सदी की बहुत सी प्रतिमाजी है । यहाँ यहाँ का पानी पीनेका फीर से शुरु किया । मृगशीर्ष वद १० का मेला लगता है। यात्रियों की आवन जावन यह मंदिर में ७ शिलालेख मिले है। १ सं. १६३८ में यह से तीर्थ की महिमा बढ़ती रही है। मंदिर का जिर्णोद्धार हुआ । २ सं. १६६७ में भूमिगृह बना । ३ यहाँ से बालोतरा स्टेशन ११ कि.मी. है । जालोर-बालोतरा सं. १६७८ में श्री महावीर स्वामी की चोकी बनी । ४ सं. रोड़ से भी जा शकते है | राजस्थान में प्रायः सब बड़े शहर से । १६८१ में तीन झस्खे साथ शंगार चोकी बनाई । ५ सं. १६८२ बस की सुविधा है । बस स्टेन्ड देरासर की निकट में है । । में नंदी मंडप बना । ६ सं. १८६४ में फीर से भूमिगृह बना । .. विशाल धर्मशाला और भोजनशाला भी है । सब यात्रियों को ७ सं, १८६५ में यह मंदिर का फीर से पुनरुद्धार हुआ । यह भाता (भोजन) दिया जाता है । जैन श्वेतांबर नाकोड़ा मंदिर में कीर्तिरत्न सू. म. की मूर्ति है । उनका जन्म यहाँ सं. पार्श्वनाथजी तीर्थ नाकोडा, पो. मेवानगर, स्टेशन बालोतरा, १४४९ में हुआ था । श्री नाकोड़ा पार्श्वनाथजी इस बाजु बड़ा जि. बाड़मेर टेलीफोन : ३० बालोतरा।
SR No.002430
Book TitleShwetambar Jain Tirth Darshan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendrasuri
PublisherHarshpushpamrut Jain Granthmala
Publication Year1999
Total Pages548
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size114 MB
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