Book Title: Uttaradhyayan Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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विनयश्रुत - एषणा समिति
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कठिन शब्दार्थ - कालेण - समय होने पर, णिक्खमे - निकले, पडिक्कमे - लौट आए, अकालं - असमय को, विवजित्ता - छोड़ कर, समायरे - आचरित करे। . भावार्थ - साधु समय पर भिक्षादि के लिए निकले और समय हो जाने पर लौट आवे, अकाल को वर्ज कर, नियत समय पर उस काल की क्रिया का आचरण करे।
विवेचन - प्रस्तुत गाथा में स्पष्ट किया गया है कि साधु के लिए जिस समय पर जिस क्रिया के अनुष्ठान की आज्ञा शास्त्र में दी है उसको उसी समय पर नियत रूप से करना चाहिए। भिक्षा के अलावा प्रतिक्रमण, प्रतिलेखना आदि अन्य धार्मिक कृत्यों को भी साधु समय पर ही करे, समय का अतिक्रमण करके अर्थात् असमय में कोई भी कृत्य न करे।
- एषणा समिति परिवाडिए ण चिट्टेजा, भिक्खू दत्तेसणं चरे। पडिरूवेण एसित्ता, मियं कालेण भक्खए॥३२॥
कठिन शब्दार्थ - परिवाडिए - पंक्ति में, ण चिट्टेजा - खड़ा नहीं होवे, दत्तेसणं - दिया हुआ एषणीय, चरे - आसेवन - ग्रहण करे, पडिरूवेण - साधु के नियमानुसार, एसित्ता - गवेषणा करके, मियं - प्रमाण पूर्वक (परिमित), भक्खए - भोजन करे।
भावार्थ - साधु जहाँ जीमणवार की पंक्ति बैठी हो वहाँ खड़ा न रहे, किन्तु पृथक्-पृथक् घरों से, दाता द्वारा दिये हुए शुद्ध आहार की गवेषणा करे, अनगारोचित योग्य रीति से नियमानुसार आहार.की गवेषणा कर आहार करने के समय परिमित आहार का भोजन करे। - विवेचन - जहाँ पर प्रीतिभोज अथवा विवाह आदि अन्य किसी निमित्त से जीमणवार किया गया हो, ऐसे स्थान पर साधु को आहार के लिए कदापि न जाना चाहिए क्योंकि ऐसे स्थान पर भिक्षा के निमित्त जाकर खड़ा होना साधु के लिए-अप्रीति - असद्भाव का कारण बन जाता है अतः ऐसे स्थान से साधु कभी भिक्षा न लावें किन्तु अनेक घरों से थोड़ा-थोड़ा निर्दोष आहार लावे।
णाइदूरमणासण्णे, णाण्णेसिं* चक्खु-फासओ। एगो चिटेज भत्तट्ठा, लंघित्ता तं णाइक्कमे ॥३३॥
'पाठान्तर - णण्णेसिं
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