Book Title: Uttaradhyayan Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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संयतीय - भयाक्रान्त राजा की अभय प्रार्थना ****************kkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkk हिरणों को बाणों से बींधने लगा। घायल हो कर हिरण इधर-उधर भाग दौड़ करते-करते थक कर जमीन पर बैठ जाते तब राजा उन्हें मार गिराता। घोड़े पर चढ़ा हुआ राजा मरते हुए हिरणों को देख कर हर्षित हो रहा था तभी उसने मृत हिरणों के पास ही एक ध्यानस्थ तपस्वी मुनि को देखा। मुनि के पास ही एक मूर्च्छित मृग को देख कर राजा चौंका और मन ही मन यह सोच कर अत्यंत भयभीत हुआ कि हो न हो ये मृग मुनि के ही हों। मैंने मुनि के मृगों को मार डाला। हाय! हाय! घोर अनर्थ हो गया मुझ से! बस इसी पश्चात्ताप की भावना के साथ वह घोड़े से एकदम नीचे उतरा और मुनि के पास जाकर अत्यंत नम्रतापूर्वक अपने अपराध के लिए क्षमायाचना करने लगा।
अह मोणेण सो भगवं, अणगारे झाणमस्सिए। . रायाणं ण पडिमंतेइ, तओ राया भयदुओ॥९॥
कठिन शब्दार्थ - मोणेण - मौन से, झाणमस्सिए - ध्यान में लीन, ण पडिमंतेइ - प्रत्युत्तर नहीं दिया, भयहुओ - अत्यधिक भयभीत। .. भावार्थ - राजा ने अपने अपराध के लिए क्षमा मांगी किन्तु उस समय वे भगवान्योगीश्वर अनगार महात्मा ध्यान आश्रित - धर्मध्यान में लीन थे इसलिए मौन रहे और उन्होंने राजा को उत्तर नहीं दिया तब मुनि द्वारा उत्तर न पाने के कारण राजा अधिक भयभ्रान्त हुआ।
.. भयाक्रान्त राजा की अभय प्रार्थना संजओ अहमम्मीति, भगवं! वाहराहि मे।। कुद्धे तेएण अणगारे, डहेज्ज णरकोडिओ॥१०॥
कठिन शब्दार्थ - संजओ - संजय, अहं - मैं, अम्मि - हं, वाहराहि - संभाषण कीजिए, कुद्धे - क्रोधी, तेएण - तेज से, डहेज - जला सकते हैं, णरकोडिओ - करोड़ों मनुष्यों को।
भावार्थ - राजा अपना परिचय देता हुआ कहने लगा कि मैं संजय नाम का राजा हूँ इसलिए हे भगवन्! आप मुझ से संभाषण कीजिये अर्थात् आप मुझे मेरे अपराध के लिए क्षमा प्रदान कीजिए क्योंकि, कुपित हुए अनगार महात्मा अपने तप-तेज से करोड़ों मनुष्य को जला कर भस्म कर सकता है।
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