Book Title: Uttaradhyayan Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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३३० ★★★★★★★
उत्तराध्ययन सूत्र - अठारहवां अध्ययन ★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★
वीतभय नगर के मृगवन में पधारे। राजा दर्शन, वंदन और धर्मश्रवण करने भगवान् की सेवा में पहुँचा। धर्मोपदेश सुनकर संसार से विरक्त हो गया और भगवान् के पास प्रव्रजित होने की भावना व्यक्त की। भगवान् ने फरमाया - 'अहासुहं देवाणुप्पिया!' राजप्रासाद में लौट कर सोचा कि 'यह राज्य किसको सौंपू?' उन्हें विचार आया कि 'यदि मैं अपने पुत्र अभिचि कुमार को यह राज्य सौंपूंगा तो वह मनुष्य संबंधी कामभोगों तथा राज्य में आसक्त हो अनंतकाल तक संसार में परिभ्रमण करता रहेगा। अतः अच्छा यही होगा कि मैं अपने भाणेज केशीकुमार को यह राज्य सौपूं।' केशीकुमार को राज्य सौंपकर राजा उदायन दीक्षित हो गये। तप संयम से अपनी आत्मा को भावित करते हुए उन्हें केवलज्ञान हो गया और अंत में सभी कर्मों को क्षय कर सिद्ध, बुद्ध, मुक्त हो गये।
१५ काशीराज नन्दन .. तहेव कासीराया वि, सेओ सच्च-परक्कमे।
काम-भोगे परिच्चज्ज, पहणे कम्म-महावणं॥४६॥ .
कठिन शब्दार्थ - कासीराया - काशीराज, सेओ-सच्च-परक्कमे - श्रेय और सत्य में पराक्रमी, पहणे - नष्ट कर डाला, कम्म-महावणं - कर्म रूपी महावन को। .
भावार्थ - इसी प्रकार काशी नरेश ने अर्थात् नन्दन नाम के सातवें बलदेव ने भी कामभोगों का त्याग करके दीक्षा अंगीकार की और श्रेष्ठ सत्य एवं संयम में पराक्रम कर के तपरूपी अग्नि के द्वारा कर्मरूपी महावन को जला कर भस्म कर डाला और मोक्ष प्राप्त किया।
विवेचन - वाराणसी के अग्निशिख राजा की रानी जयंती की कुक्षि से नन्दन नामक सातवें बलदेव का जन्म हुआ। उसका छोटा भाई, शेषवती रानी का आत्मज 'दत्त' नामक वासुदेव हुआ। दत्त ने अपने भाई नन्दन की सहायता से अर्द्ध भरत क्षेत्र को जीता और राज्यलक्ष्मी का उपभोग किया। वासुदेव दत्त मर कर पांचवीं नरक में गया जबकि नंदन ने संसार से विरक्त हो कर प्रव्रज्या ग्रहण की। ६५००० वर्ष की सर्व आयुष्य भोग कर मोक्ष पधारे।
१८. विजय राजा तहेव विजओ राया, अणट्ठाकित्ति पव्वए। रज्जं तु गुणसमिद्धं, पयहित्तु महाजसो॥५०॥
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