Book Title: Uttaradhyayan Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 410
________________ महानिग्रंथीय - अनाथता-सनाथता का स्पष्टीकरण ३८१ kkkxxxkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkk******************* उवटिया मे आयरिया, विजामंत-तिगिच्छया। अबीया सत्थ कुसला, मंतमूल-विसारया॥२२॥ कठिन शब्दार्थ - उवट्ठिया - उपस्थित हुए, आयरिया - आयुर्वेदाचार्य (प्राणाचार्य), विज्जामंत तिगिच्छया - विद्या और मंत्र के द्वारा चिकित्सा करने वाले, अबीया - अद्वितीय, सत्थकुसला - शास्त्र कुशल, मंतमूलविसारया - मंत्र तथा मूल (जड़ी बूटियों के प्रयोग) में विशारद। भावार्थ - मेरी चिकित्सा करने के लिए ऐसे आचार्य (आयुर्वेदाचार्य) उपस्थित हुए थे जो विद्या और मंत्र द्वारा चिकित्सा करने में अद्वितीय एवं प्रवीण थे तथा शस्त्रकिया में कुशल अथवा शल्य चिकित्सा शास्त्र में कुशल एवं मंत्र और मूल औषधि आदि के प्रयोग करने में विशारद - अति निपुण थे। ते मे तिगिच्छं कुव्वंति, चाउप्पायं जहाहियं। ण य दुक्खा विमोयंति, एसा मज्झ अणाहया॥२३॥ " कठिन शब्दार्थ - तिगिच्छं - चिकित्सा, कुव्वंति - करते हैं, चाउप्पायं - चतुष्पाद, जहाहियं - जिस प्रकार से हित हो वैसी, दुक्खा - दुःख से, ण विमोयंति - विमुक्त नहीं कर पाए, एसा - यह, मज्झ - मेरी, अणाहया - अनाथता। . भावार्थ - जिस उपचार से लाभ हो उसी से वे वैद्य मेरी चतुष्पाद - चारपाद वाली चिकित्सा करते थे किन्तु वे मुझे दुःख से नहीं छुड़ा सके, यह मेरी अनाथता है। _ विवेचन - स्थानांग सूत्र स्थान ४ में चतुष्पाद चिकित्सा का उल्लेख करते हुए आगमकार फरमाते हैं - . "चउविहातिगिच्छापण्णत्ता, तंजा-विज्जो, ओसहाई,आउरे, परिचारए।" अर्थात् - १. योग्य वैद्य हो २. उत्तम औषधि हो ३. रोगी श्रद्धा पूर्वक चिकित्सा कराने के लिए उत्सुक हो और ४. रोगी की सेवा करने वाले विद्यमान हों, इन चार बातों से युक्त चिकित्सा 'चतुष्पाद चिकित्सा' कहलाती है। इस प्रकार की गई चिकित्सा प्रायः सफल होती है। पिया मे सव्वसारं पि, दिजाहि मम कारणा। ण य दुक्खा विमोएइ, एसा मज्झ अणाहया॥२४॥ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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